Saturday, December 25, 2010

Maa Tapati Kee Aash







                                    आखिर कब बुझेगी मेरे गांव की प्यास ,
                             माँ ताप्ती के पावन जल की है सभी को आस........!
                                             रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक न्यूज चैनल पर अपने के लोगो को नारे लगाते बैनर थामें देखा तो मैं कुछ पल के लिए सकपका गया। आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे गांव में जिसके चलते टी वी चैनलो पर मेरे गांव को लेकर एंकर लम्बे - चौड़े कसीदे पढ़ रहा है। न्यूज चैनल पर चल रही खबर से मुझे पता चला कि मेरे गांव के लोगो को उनके सुखे कुयें और खेत - खलिहान की बेबसी आन्दोलित कर गई। मेरा गांव में पानी को लेकर उस समय से गांव के लोग नेताओं के चक्कर पर चक्कर लगा कर घनचक्कर हो गये जब बात चली थी कि जगदर पर बड़ा डैम बनेगा और उसकी नहरे रोढ़ा - बाबई - सेलगांव तक पहँुचेगी लेकिन आज तीस - पैतीस साल हो गये रोंढ़ा की तड़पती और तरसती धरती पर सूखी नहरे तक नहीं बनी जिसमें हम बरसात का पानी रोक सके। जगधर का बांध बैतूल जिले के उन धन्नासेठो ने नहीं बनने दिया जिसकी जमीन बांध और नहरे में जा रही थी। आज जगधर का बांध तो जरूर बन गया लेकिन उसकी नहरे तो बैतूल बाजार तक आते - आते ही सूखने लगती है। गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ - बहने - बहु - बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें में पानी ही नहीं बचा है। पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ - तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है। कल तक मेरे गांव की कोसामाली और जामावली पूरे गांव की प्यास बुझाती थी लेकिन कोसामाली और जामावली के बुढ़े हो चुके कुओं के हालातो पर तो मुझे भी रोना आता है। जिस कोसामाली पर सुबह से लेकर शाम तक पनहारी पानी के मटको और बर्तनो के साथ पानी भरने आया करती थी आज वहीं पनहारी अपने गांव की गलियों में गांव की पंचायत के द्धारा लगवाई गई नल योजना नल और बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पूरे गांव को एक साथ पानी की सप्लाई तो दूर एक मोहल्ले को भी पूरा पानी पिलाने का आज उस नलकूप योजना पर भरोसा करना याने सुबह से शाम तक प्यासे मर जाने के समान है। मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है। बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया - गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है। गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा - तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। इधर परसोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है। खेड़ी - सेलगांव - बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। गांव को आने एवं जाने के लिए जितनी पंगडंडी है वह आज भी वैसी ही है जैसे कभी मेरे बचपन में हुआ करती थी। गांव के समग्र विकास की बाते करने वालो को आज मेरे गांव के युवा वर्ग ने अगर बहिष्कार का जूता दिखाया है तो नि:सदेंह इस काम के लिए मैं और मेरा पूरा गांव उस युवा पीढ़ी को बधाई देता है। आखिर कोई तो माई का लाल इस गांव को मिला जो गांव आकर आजादी के 61 सालो में मेरे गांव के भोले - भाले मतदाताओं को लालीपाप देकर वोट मांगने के बहाने झुठी तसल्ली देकर ठगता चला आ रहा था उन ठगो को जूता दिखा कर डराना गांव में आई जन जागृति का प्रतीक है। दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है। लोग आते है , चले जाते है। कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है। जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है । जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है। थोड़ी से भूल - चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया.... ऐसे  में सब कुछ खो जाने का डर रहता है। इसलिए लोग संभल - संभल कर चलने लगे है। गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है। मेरे गांव के लोग बम्बई - दिल्ली - कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है । जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ''बच्चो का भविष्य देखना है .....!''  ''आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या.... ?'' अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि .... वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव है क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा है। रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा। आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है आज पूरे गांव के साथ प्यासा है। पहले लोग माता मैया के चबुतरे पर हर रोज पानी चढ़ाने आया करते थे। सुबह स्नान के बाद कुओं से लाया गया शुद्ध पानी का एक हिस्सा माता मैया के ऊपर अर्पित किया जाता था जिसके चलते उस चम्पा के पेड को भी पानी मिल जाता था और लहलहा उठता था लेकिन अब तो गांव के लोगो को यह तक पता नहीं रहता कि गांव के नल से पानी आयेगा या नहीं ......यही हाल गांव के कुओ का है जो गांव के कुयें कभी पूरे गांव को बरसात तक पानी पूराते थे आज वहीं कुओं का पानी दिवाली के बाद समाप्त होने लगता है। कहना नहीं चाहिये लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। आजादी के 61 सालो में मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है। बैतूल जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है। आज गांव के आसपास लगी जना जागृति की आग की लपेट में सूरगांव - नयेगांव - सेहरा - सावंगा आ चुके है। अब गांव से लगी गांव से गांव के सुखे पड़े खेतो के भूसे जलने के बजाय गांव वालो के दिल दिमाग दहक रहे है। गांव का बचचा और बुढ़ा दोनो ही गांव के आसपास सूखे खेत - खलिहान को देकर आन्दोलित हो उठा है। अब मेरे गांव को माँ सूर्य पुत्री ताप्ती का जल ही तृप्त कर सकता है। मेरा माँ ताप्ती जन जागृति मंच के द्धारा लोगो को माँ ताप्ती से जोडऩे का सिलसिला अब मुझे अपने गांव को भविष्य में माँ सूर्य पुत्री ताप्ती से जुड़ता दिखाई देने लगा है। मेरे गांव के सूर में सूर मिलाने के जब सूरगांव आ गया है तब मैं कल्पना कर सकता हँू कि आने वाले कल में जब माँ ताप्ती का जल दुसरे प्रदेशो को मिलने के बजाये मेरे गांव और खेत खलिहानो तक पहँुचेगा तो आसपास के गांव को भी माँ ताप्ती का तपते आसमान के समय भी जल मिलने लगेगा। जब भोपाल तक भोपाली नेताओं के लिए माँ नर्मदा पहँुच सकती है तब मेरे गांव के लिए मेरी अराध्य माँ ताप्ती क्यों नहीं पहँुच सकती.....? अब हमें और हमारे गांव वालो को अपने साथ आसपास के दर्जनो को गांवो के लोगो को खड़ा करके मेघा पाटकर की तर्ज पर ताप्ती रोको आन्दोलन करना होगा। जब हमारी माँ के आँचल से हमारी प्यास नहीं बुढ सकती तो हम पड़ौसी दुसरे राज्यो की प्यास को भी नहीं बुझने देगें। आज शर्मनाक बात है कि बैतूल जिले के जिस माँ ताप्ती के पावन जल में अनेको साधु संतो - मुनियो एवं स्वंय भगवान श्री राम के पूर्वजो को मुक्ति मिली उसके लिए हमें जीते जी और मरने के बाद भी तरसना पड़े ऐसा नहीं होने दिया जायेगा। गांव के लिए गंवार के लिए सही लेकिन अब ताप्ती का जल पूरे बैतूल जिले के खेंत - खलिहानो और सुखे कुओ तथा बावलियों के अलावा प्यासे कंठो को मिलना चाहिये। ऐसे काम के लिए नेताओं और उनके दलो को आँखे दिखाना या उनकी वादाखिलाफी को गिनाना कोई संगीन अपराध नहीं है। गांव के आन्दोलन में मेरा पूरा तन - मन गांव को समर्पित है क्योकि आज मुझे हर मंगलवार और शनिवार माँ ताप्ती के पावन जन में स्नान - ध्यान करने के लिए जाना पड़ता है लेकिन यदि मेरे गांव को या आसपास के लोगो के पास माँ स्वंय कल - कल करती यदि आयेगी तो उनकी कई पीढिय़ो का कल्याण हो जायेगा। एक बार सारे मिल कर बोलो जय माँ ताप्ती की जिसकी राह देख रहे है रोंढा एवं आसपास के गांवो के लोग......

Tapati Jal

                                                    हास्य - परिहास
                                पंडित जी मेरे मरने के बाद , इतना कृष्ट उठा लेना
                                           मदिरा जल की जगह , ताप्ती का जल पिला देना
                                                       :- रामकिशोर पंवार
कल रात जब मैं रायपुर से छत्तिसगढ एक्सप्रेस से बैतूल वापस लौटा तो रात के ढाई बज चुके थे। ऐसे समय जब रात आधी ज्यादा बीत जाये तब नींद कहाँ आती है। रात को चाय पीकर जब मैने टीवी चालू की तो मेरी पंसीदा फिल्म रोटी - कपडा और मकान आ रही थी। यह फिल्म उस दौर की है जब मेरी शादी भी नहीं हुई थी। इसलिए जवानी के दिनो की मनोज कुमार की इस फिल्म की अभिनेत्री जीनत अमान मेरे दिल के किसी कोने में भी हलचल मचाने लगी थी। उस समय का लोकप्रिय गाना मैं ना भूलूंगा --- मैं ना भूलंगी --- इस गीत के आधी रात को बजने के बाद मुझे अपने सपनो की जीवन संगनी की परिकल्पना किसी चलचित्र की तरह मेरी आँखो के पटल के सामने चलने लगी। मैं उस फिल्म का दुसरा गीत को भी कभी नहीं भूल सकता क्योकि उस गीत ने आज के इस समय में मेरी सोच में जमीन आसमान का परिवर्तन ला दिया। उस समय के रामू में और आज के रामू जमीन आसमान का इसलिए फर्क आ गया क्योकि वह उम्र थी गंगाजल की जगह मदीरा पीने की लेकिन पता नहीं क्योकि उस न तो गंगा मिली न शराब और रह गये यूँ ही प्यासे के प्यासे----- आज जब लोग चाहते कि मैं गंगाजल की जगह शराब पीऊ तो शराब पीने की इच्छा न तब हुई और न अब---- आज तो ऐसा लगता है कि हम मरने से पहले ही अपनी वसीयत कर जाये  कि पंडित जी मेरे मरने के बाद मेरे मँुह में मदिरा जल की जगह ताप्ती जल पिला देना। आज लोग ताप्ती की जगह मदिरा को पीने में अपनी प्रतिष्ठा समझते है। पता नहीं लोगो को क्यूँ शराब - शबाब - कबाब का चस्का लग गया है जो कि मृत्यु की पहली सीढ़ी है।  जीवन एक चक्र है जिसमें लोगो का आना - जाना एक नियती का चक्र है जिसके तहत जो आया है उसे एक न एक दिन जाना है। मनोज कुमार की उस फिल्म की एक नायिका अरूणा ईरानी पर फिल्माया गया वह गाना आज के पंडित जी के ऊपर सटीक बैठता है क्योकि कहना नहीं चाहिये कि अधिकांश पंडित जी अपने मँुह मे गंगा जल कीह जबह मदीरा जल का ही सेवन करने लगे है। मेरे दोस्त तो दूर मेरे दुश्मन भी यही चाहत पाले है कि मैं भी किसी भी तरह से शराबी हो जाऊ और उनकी तरह यहाँ - वहाँ पर कटोरा लेकर दारू मांगता फिरू लेकिन मेरे लिए यह सब इसलिए मुनकीन नहीं क्योकि बचपन से ही मैने शराब से बिडगते परिवारो को और अपने नाते - रिश्तेदारो के हश्र को देखा है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बारे में कम से कम लोग यह तो नहीं कहे कि वो देखो साला दारू कुटट दो पैग छाप पत्रकार जा रहा है जिससे अध्धी - पौवा देकर जो चाहे छपवा लो...... आज की पत्रकारिता में लोगो की भीड बढने का वज़ह भी कुछ हद तक फ्री की शराब और कबाव भी है। लोगो जब बिना हाथ पांव चलाये रोज कोई न कोई बकरा दारू पिलाने के लिए या फिर नरेन्द्र जैसा कथित छपास रोग की पीडा से ग्रसित व्यक्ति मिल जाये तब तो उसकी हर रात रंगीन होगी। आज बैतूल जिले के पत्रकारो को रोज ताप्ती जल पीने की या उसमें नहाने की नसीहत देना बेकुफी होगा क्योकि उसे तो सुबह - दोपहर - शाम को बस कोई भी मुज्जी चाहिये। बैतूल शहर में ही नहीं गांवो में भी पागलो की और मुर्खो की कमी नहीं है। एक ढुंढो - दस हजार मिलेगें। आज बैतूल जिले में ही नहीं दिल्ली - भोपाल और गांव - गांव में पेपर बेचने वाले हाकर पत्रकार बन गये स्थिति तो यह आने वाली है कि हम कैमरा पकडने वाला कैमरामेन की जगह न्यूज चैनल का पत्रकार मिलेगा जिसके एक सेकण्ड का पैसा नहीं बल्कि रूपैया होगा वह भी दस - पाच में न होकर हजारो में होगा। आज बैतूल जिले की पत्रकारिता को आवश्क्यता इस बात की है कि जिले भर के पत्रकारो को पहले खुब शराब पिला कर उन्हे ताप्ती में तब तक डुबाये रखना है जब तब की वे शराब और शबाब से तौबा न कर ले। मैं तो यही चाहता हँू पता नहीं कितने लोग मेरी नसीहत पर खरे उतरते है। अंत में माँ ताप्ती सबका भला करे पीने वाले का भी और पिलाने वाले का भी सबसे बाद मे मेरे जैसे नहीं पीने वाले का भला का जिससे की समाज का कथित सुधार हो सके। एक बार फिर उस रोटी - कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।  

Surya Mandir


                                                                    रहस्य
                                                 पहाडिय़ो में छुपा सूर्य मंदिर
                                           सत्यकथा : - रामकिशोर पंवार ''रोढ़ावाला''
भगवान भास्कर जब सुबह अपने रथ पर सवार को जाने के लिए अपने शयन कक्ष से बाहर नहीं निकले तो उनके पूरे महल में चहल - पहल शुरू हो गई. माता संध्या ने भगवान भास्कर से कहा कि '' हे प्रभु आज क्या अपने रथ पर सवार होकर धरती की परिक्रमा करने का इरादा नहीं है क्या....!'' अपने शयन कक्ष में असलाई निंद्रा में उन्होने संध्या से पुछा ''संध्या क्या चांद ने अपनी परिक्रमा पूरी कर ली.....! , तारो की गणना क्या कहती है....!  मुझे वास्तव में अपने स्वर्ण रथ लेकर सृष्टि की परिक्रमा पर निकल जाना चाहिये .......!'' सूर्य नारायण के कई तरह के सवालो के उत्तर में भगवान विश्वकर्मा की पुत्री माता संध्या ने जवाब देने के बजाय अपनी प्रतिछाया सूर्य नाराणय की दुसरी भार्या माता छाया को बुलाया और वह उससे बोली ''अब छाया तुम ही भगवान दिवाकर को समझाओ की उनके जाने का समय निकला जा रहा या नहीं......!'' भगवान सूर्य नारायण की दोनो जीवन संगनी के बीच हो रहे वार्तालाप को सुन रही भगवान भास्कर की छोटी बिटिया ताप्ती अचानक हस पड़ी और कहने लगी ''माँ जो इस सृष्टि के सबसे बड़े देवता है वे तक भगवान सूर्यनारायण की प्रतिक्षा कर रहे है क्योकि बाबा भोलेनाथ को भी तो भोर होते ही अपने शिव भक्तो के अभिषेक का इंतजार रहता है.....!'' ताप्ती की बात पर सूर्य पुत्र शनि ने अपनी छोटी बहन ताप्ती को समझाया कि  ''बहना तू अभी छोटी है.... यदि जगतपिता ब्रहमा द्धारा रचित विधान को अपना ही पिता नहीं मानेगा तो भी पूरी सृष्टि में महाप्रलय आ जायेगा और फिर कहीं न कहीं सारा दोष मेरे ऊपर ही आ जायेगा क्योकि लोग तो कहना नहीं भूलेगें कि शनिदेव की दृष्टि पड़ी है तभी तो सब कुछ हो गया ......! , ऐसे में हम भगवान भास्कर की सभी संतानो को चाहिये कि हम अपनी माताओं के द्धारा किये जा रहे प्रयासो पर किसी भी प्रकार की टीका - टिप्पणी न करे और जैसा होना है उसे होने दे......!'' अपने पुत्र की बातो को सुन कर मंद - मंद मुस्कराये भगवान भास्कर ने शनि से कहा कि ''बेटा मुझे आज महसुस हुआ कि मैने तुझे न्याय का देवता बनवा कर कोई गलती नहीं की , क्योकि सही और गलत का फैसला तो तुझे ही करना है ..... , और उसी के हिसाब से सभी को अपने - अपने कर्मो का फल भोगना है.....!'' अपने शयनकक्ष से स्नान - ध्यान आदि से निवृत होकर जैसे ही भगवान भास्कर अपने बारह अश्व  की सवारी वाले स्वर्ण से बने भास्कर रथ पर सवार होने के लिए अस्तबल में पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहां पर उनका बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ नहीं था. भगवान भास्कर अपने ही महल से पहली बार इस तरह लापता हुये अपने स्वर्ण रथ को लेकर चिंता में पड़ गये. इधर धरती - आकाश - बैकुंठधाम यहाँ तक की स्वर्ग में भगवान भास्कर के आने की प्रतिक्षा कर रहे देवी - देवता , नर - नारी - किन्नर , दैत्य - दानव , पशु - पक्षी , वनस्पति , पेड़ - पौधे - जल - थल सभी को बैचेनी होना शुरू हो गई........! अब लोग इसे महाप्रलप का समय से पहले से आने की भविष्यवाणी समझ कर अभी से  चिंताग्रस्त हो गये. भगवान भास्कर को चिंता में देख कर सूर्यपुत्र शनि ने अपनी नज़र घुमाई तो उसे दिखा कि एक दानव भगवान भास्कर का बारह अश्वो का रथ लिए भागे जा रहा था. उसने यह बात अपने पिता को बताई तो भगवान भास्कर और भी चिंता में पड़ गये. दोनो ही पिता पुत्र उस राक्षस की ओर दौड़ पड़े . पिता - पुत्र को इस तरह एक दुसरे के पीछे दौड़ता देख भगवान भोलेनाथ चिंता में पड़ गये. उन्हे लगा कि एक बार फिर कहीं पिता - पुत्र में कोई विवाद तो नहीं हो गया .....! इसलिए भगवान भास्कर बिना रथ के ही अपने पुत्र शनि के पीछे भागे जा रहे है. दोपहर होने को थी ऐसे में आखिर सूर्य पुत्र शनि ने उस राक्षस को  रोक लिया और उससे भगवान भास्कर का रथ वापस लौटाने को कहा लेकिन राक्षस ने शनिदेव की चेतावनी नहीं मानी. अपने किले से एक राक्षस को बारह अश्वो के रथ को देख कर राजा इल की इच्छा हुई कि वह उस राक्षस से रथ छीन ले.....! बस इसी उधेड़बुन में राजा इल ने भगवान भास्कर एवं शनिदेव को देखे बिना ही अपनी मंत्र शक्ति चला दी. मंत्र शक्ति के प्रभाव पड़ते ही वह बारह अश्व रहित स्वर्ण रथ पत्थरो का हो गया. जब राजा इल उस रथ तक पहुंचे वहां पर देवी - देवताओं की लम्बी - चौड़ी जमात एकत्र हो गई थी. रथ को पत्थर को होता देख राक्षस वहां से भाग खड़ा हुआ. अब भगवान भास्कर चिंता में पड़ गये कि इस पत्थरो के रथ पर वे भलां कैसे पूरी सृष्टि की परिक्रमा लगा पायेगें. शनिदेव ने राजा इल से कहा कि वह जिस मंत्र विद्या से रथ को पत्थरो का किया है उसी मंत्र विद्या से इसे अपने मूल स्वरूप में कर दे लेकिन राजा इल ने हाथ जोड़ लिये और वह कहने लगा कि ''हे अदिति नंदन मुझे किसी भी चल - अचल वस्तु को पत्थर का बनाने का मंत्र मालूम था .....! अब इसे मैं क्या दुनिया की कोई भी मंत्र शक्ति अपने मूल स्वरूप में नहीं ला सकती ......!  ऐसे में हे प्रभु मेरी तपस्या और भगवान भास्कर के प्रति समपर्ण को देख कर आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हँू कि भगवान भास्कर एक बार इस रथ में बैठ जाये ताकि मैं रोज अपने महल से इस पहाड़ी पर मेरे द्धारा बनवाये जाने वाले सूर्य मंदिर में भगवान भास्कर आपकी दिन की भरी दोपहर में पूजा - अर्चना कर सकूं ....'' इस बीच भगवान विश्वकर्मा शिव आदेश से दुसरा बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ का निमार्ण कर आ चुके थे. भगवान विश्वकर्मा के साथ पूरा सूर्य परिवार था. भगवान भास्कर ने राजा के आग्रह को स्वीकार किया और स्वर्ण से पत्थर का बने रथ पर जैसे ही बैठे पूरे आकाश में उनका तेज प्रताप जगमगा उठा. धरती - आकाश - शिवलोक , बैकुंठधाम , स्वर्ग लोक से सभी देवी - देवताओं ने भगवान भास्कर पर फूल बरसाने शुरू कर दिये. इस बीच नारायण भक्त देवऋषि नारद भी अपनी वीणा के साथ उस पहाड़ी पर आ गये. जहां पर पत्थरो का वह रथ था जिस पर भगवान भास्कर कुछ पल के लिए बैठे हुये थ्से. देवऋषि नारद ने राजा इल से कहा कि ''राजन तुम्हारे कर्मो का ही फल है कि आज भगवान भास्कर इस धरती पर किसी स्थान पर नही बल्कि एक ऐसी पहाड़ी पर विराजमान हुये जिसको तुम्हारे किले के चारो दरवाजो से देखा जा सकता है. .....''  देवऋषि की वाणी का सभी ने स्वागत किया. भगवान भास्कर ने अपने दुसरे रथ पर सवार होकर सृष्टि की परिक्रमा शुरू कर दी लेकिन उनके मन में इस बात का संशय बना रहा कि इतनी पहरेदारी के बीच उनके महल तक उनकी तपन की बिना परवाह किये बिना उनका रथ चोरी करने का र्दु:साहस भलां कैसे हो गया. भगवान भास्कर को चिंताग्रस्त देख कर देवऋषि नारद आये और वे कहने लगे ''भगवान भास्कर आपकी चिंता का प्रमुख कारण आपके परिवार से ही जुड़ा है..... , जब - जब आप पिता - पुत्र आमने - सामने होगें तब - तब  इस संसार में ऐसी लीलाए भगवान लीलाश्वर याने उमापति महादेव रचते रहेगे......!'' वह जो रथ को चुराने वाला कोई और नहीं भगवान नीलकंठ से ही सिद्धी प्राप्त एक असुर है जिसका नाम सुन कर आपको हैरानी होगी. भगवान भास्कर की जिज्ञासा को शांत करते हुये नारद जी  बोले ''भगवन यह कोई नहीं बल्कि स्वंय आपके अहंकार से उत्पन्न राक्षस सूर्यासूर है जिसने बरसो आपकी ही पुत्री माँ ताप्ती के तट पर बारहलिंग नामक देव स्थान पर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वरदान मांगा कि ''हे प्रभु मैं कुछ ऐसा कर जाऊ कि यह सृष्टि मुझे याद रखे .......!'' भगवान शिव ने बिना कुछ सोचे अपने भक्त को आर्शिवाद दे डाला. भगवान शिव के आर्शिवाद एवं आपकी पुत्री ताप्ती के निर्मल जल से भीगा होने के कारण उसे आपकी तपन का असर नहीं हुआ और वह आपका स्वर्ण रथ चुरा कर ले गया. अब प्रभु आपको याद होगा कि आपके भक्त राजा इल ने अपने राज्य में पड़े सुखे और आकाल से निपटने के लिए किले के सामने बनवाये उस तालाब में अपने पहले पुत्र और वधु को हवन की बेदी पर बैठाला था. उस सूर्य उपासना से ही तालाब में चारो ओर से जलधारा बह निकली और राजा के पुत्र और पुत्रवधु की जलबलि चढ़ गई. आपने ही राजा से कहा था कि ''हे राजन मैं तुम्हारे त्याग और तपस्या तथा मेरे प्रति समपर्ण से प्रसन्न हूं , चाहो तो इच्छानुसार वर मांग सकते हो......!'' अपने इकलौते पुत्र और पुत्रवधु की मौत से शोकाकुल राजा ने उस समय आपसे कुछ नहीं मांगा लेकिन उसने अपनी सूर्य उपासना जारी रखी. उसे नहीं पता था कि जो राक्षस आपका रथ लेकर भाग रहा है वह सूर्यासूर है तथा उसके पीछे भगवान शिव की शिवलीला है जो इस बात का संकेत देती है कि भक्त और भगवान एक समान . राजा तो स्वंय चाहता था कि वह उस राक्षस से आपका रथ छीन ले लेकिन किले से उस पहाड़ी तक जाने में उसे काफी समय लग जाता इसलिए उसने अपनी मंत्र शक्ति का उपयोग करके पूरे रथ को ही पत्थर का बना डाला. रथ को पत्थरो का बनता सूर्यासूर भाग खड़ा हुआ. अपने रथ का पीछा करते भगवन भास्कर आप और आपके पुत्र शनिदेव जब इस पहाड़ी तक पहुंचे राजा इल भी वहां पहुंच चुका था. राजा की इच्छानुसार प्रभु आपको दोपहर को एक पल के लिए उस पत्थरो के रथ पर बैठना पड़ा क्योकि इस संसार में पृथ्वी पर आज तक किसी भी स्थान पर भगवान सूर्य आपका स्वर्ण रथ वाला मंदिर नहीं है. जिस पर आप स्वंय हर दिन दोपहर को एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है. इस मंदिर को लोग सदियो तक पूजते रहेगें लेकिन एक दिन यह मंदिर अपने आप ही अपने मूल स्वरूप को खो देगा.
                दादी और नानी से कई बार इस कहानी को सुन चुका था कि मेरे ही जिले की किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है जिसने भगवान भास्कर एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है . बचपन की सुनी कहानी को मेरे दिमागी चित्रपटल ने आज तक जिंदा रखा था. मैने सबसे पहले खेडला किले के आसपास की पहाडिय़ो की खाक छानने के बाद मैं आगे की ओर बढ़ता गया. मुझे महिने नहीं बल्कि ढाई - तीन साल लग गये. जवानी के दिनो में मैने सत्यकथा में भी सूर्यमंदिर की कहानी पढ़ी थी लेकिन लेखक ने ऐसा भ्रम का जाल बिछाया कोई उस ठौर तक जा ही नहीं सका. हालाकि उस लेखक की कहानी का केन्द्र भी वही सूर्य मंदिर था जिसे मैं खोज रहा था. आज जब मैं उस पहाड़ी के करीब पहुंचा तो मैने कई आसपास के कई राह चलते ग्रामीणो से पुछा कि ''इस गांव की किस पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है लेकिन पूरे गांव में कोई भी मेरे सवाल का जवाब नहीं दे सका......!'' अचानक कुछ देर रूकने के बाद मैं उस पहाड़ी की ओर अकेला ही चल पड़ा . पूरा जंगल सुनसान कंटीली झाडिय़ो से भरा बियावान था . मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था. कुछ दूर चढऩे के बाद जब थकान के मारे जब  मेरा दम भरने लगा तो मैं एक स्थान पर बैठ गया. आबादी से कोसो दूर उस पहाड़ी पर मुझे एक बाबा दिखाई दिया . जब मैने उससे सूर्य मंदिर का पता पुछा तो वह बोला ''पत्रकार हो या कहानीकार .......!'' मैं अपने बारे में बाबा से सच्चाई जानने के बाद भौचक्का रह गया. मुझे लगा कि सूर्य मंदिर के चक्कर में मैने बैठे ठाले मुसीबत मोल ले ली है. बाबा बोला ''बेटा मंदिर को ही देखेगा या उसके पीछे की कहानी भी जानेगा .....!'' और फिर वह बाबा ऊपर बताई गई कहानी को सुनाते हुये मुझे ठीक भरी दोपहर को उस स्थान पर ले गया जहां पर सूर्य भगवान का वह पत्थरो में बदला रथ और मंदिर था. पहाड़ी पर बने सूर्य मंदिर की कोई छत नहीं थी . बस चारो ओर परकोटे के खम्बे गड़े थे. सूर्य भगवान की प्रतिमा एक स्थान पर लेटी हुई थी. पूरा रथ जो पत्थरो का बना था उसके सारे पत्थर आसपास के गांव के लोग निकाल कर ले जा चुके थे. मंदिर में देखने को कुछ भी नहीं था लेकिन जैसे ही सूर्य सर के ऊपर आता है अचानक उस स्थान पर सूर्य का तेज इतना बढ़ जाता है कि ठंड हो बरसात इसंान पानी से नहा लेता है. कुछ पल बाद स्थिति ज्यों की त्यों हो जाती है. बाबा ने ठीक उसी समय लेटे हुये भगवान भास्कर की प्रतिमा की पूजा की और वे अचानक मेरी आंखो से ओझल हो गये. सुनसान पहाड़ी पर मेरे अलावा कोई नहीं था. डर के मारे मैं थर - थर कांप रहा था. दिन में किसी भूतहा महल या खोली में जाने के बाद होने वाली स्थिति का मुझे आभास होने लगा. मैने अपनी अराध्य माँ काली को और माँ ताप्ती को संग - संग याद किया और उल्टे पांव पहाड़ी से नीचे उतरने लगा. मुझे पहाड़ी चढऩे से ज्यादा समय उतरने में लग रहा था. थोड़ा सा भी अनबेलेंस हो जाता तो सीधे खाई में जा गिरता लेकिन मैने लताओं और पेड़ो की टहनियों को पकड़ कर नीचे उतरने का प्रयास किया. शाम होने को आई थी. जब थका - हारा मैं उस गांव में पहुंचा तो पूरा गांव मुझे नफरत से देख रहा था. गांव का एक बुर्जग बोला ''बेटा क्यों हमारी - तुम्हारी जान के दुश्मन बने हो ....... उस पहाड़ी पर जाने के बाद ही गांव में कोई न कोई आफत आती है......!'' मैने उस बुर्जुग से पुछा ''बाबा कैसी मुसीबत और कैसे जान पर आफत ......!'' वह बोला तुम जिस बाबा के साथ उस पहाड़ी तक पहुंचे हो वह कोई और नहीं बल्कि उस सामने वाले किले का राजा इल ही है जो बरसो से अपने अराध्य भगवान सूर्य नारायण की भरी दोपहर में पूजा करने जाता है . जबसे उस मंदिर के पत्थर चोरी होने लगे तबसे पूरे गांव पर मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा है. समय के काल चक्र ने उन लोगो की जाने ले ली है जिसने उस मंदिर के पत्थरो से बने रथ के पत्थरो को निकाल कर विदेशियो को बेचा डाला था . पिछली बीस सालो में आसपास के कई गांवो के कई नौ जवान लोभ और लालच की बेदी पर बलि चढ़ गये है . पहली बार पत्थर लाकर देने के बाद जब भी वह दुसरी बार उस पहाड़ी पर गया है वहां से जिंदा नहीं लौटा है. एक - एक करके इस गांव के हर घर का एक छोरा उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में काल के गाल में समा जाता है. वह राजा आज भी रोज दोपहर को साधु - बाबा - संत  के भेष में मंदिर में अपने भगवान की पूजा करने जाता है. जिसकी नीयत साफ हो उसे वह पहाड़ी तक ले जाता है लेकिन जिसके मन में लोभ लालच आया समझो उसकी जान चली जाती है. आज पिछली बीस पीढिय़ों से हम इस मंदिर के श्राप का दण्ड भोग रहे है. जब भी कोई गांव में आने के बाद मंदिर का पता पुछता है तो हमें ऐसा लगता है कि कहीं यह भी उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में अपनी जान न गवां बैठे.  जब मैने उसे बताया कि ''मैं लेखक हूं कहानी लिखता हू , इस सूर्य मंदिर को लेकर भी कहानी लिखना चाहता हँू......!'' मेरी बात सुन कर वह बुढा व्यक्ति बोला ''बेटा मैं पहले ही कह रहा था कि क्यों हमारी जान के दुश्मन बने बैठे हो ......! , तुम कहानी लिखोगें उसे पढ़ कर लोग आयेगें और फिर वही होगा जो अभी तक होता आ रहा था........!'' मैने उस व्यक्ति के साथ पूरे गांव को यकीन दिलाया कि मैं अपनी कहानी में कहीं पर भी आपके गांव का नाम और पता नहीं बताऊंगा......... मेरी बात का उन लोगो पर असर हुआ. बातचीत में पता भी नहीं चला कि कब रात हो गई. जब मै अपनी मोटर साइकिल लेकर जाने लगा तो गांव वालो मे मुझे रोक लिया और वे कहने लगे कि रात का सफर दिन के सफर से ज्यादा खतरनाक है. गांव वालो के आग्रह पर मैं रात तो वहीं रूक गया. रात में गांव के लोगो ने मुझे वे मंदिर के पत्थर दिखाये जिसके चक्कर में उनके बच्चे बेमौत मारे गये थे. उन पत्थरो को देखने के बाद कहीं से कहीं तक ऐसा नहीं लगता था कि ए पत्थर है या स्वर्ण ....... गांव वालो की बताये किस्से कहानी सुन कर मुझे कब आंख लग गई और मैं सो गया. सुबह जब नींद खुली तो मैने स्वंय को अपने ही घर के बिस्तर पर पाया. मेरी हालत देख कर मेरा पूरा परिवार मेरे चारो ओर बैठा था. मेरे दोनो बेटो और पत्नि का रो रोकर बुरा हाल था. बाबू जी और मां भी अपनी आंखो के आंसुओ को रोक नहीं पा रहे थे. मेरे लाख पुछने पर जब किसी ने कुछ नहीं बताया तो मैं बिस्तर से उठा और अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत होने के बाद मैने अपने बड़े बेटे से कहा कि ''बेटा गाड़ी बाहर निकाल आज शनिवार है ताप्ती नहाने चलना है......!'' घर के लोगो के मना करने के बाद भी मैं ताप्ती नहाने के लिए निकल गया. माँ सूर्य पुत्री ताप्ती में स्नान - ध्यान और पूजा करने के बाद जब मैं वापस लौटने लगा तब  मेरे बेटे ने बीती रात वाली कहानी मुझे ्रबता ही दी. उसके अनुसार  ''पापा आज आप सपने में किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर को देखने के लिए जा रहे थे और इधर बिस्तर पर बड़बड़ाते जा रहे थे .......!'' आपकी हालत देख कर ही सभी लोग नींद से जाग कर आपके जागने का इंतजार करने लगे. जब घर पहुंचा तो घर पर नाते - रिश्तेदारो की लम्बी चौड़ी भीड़ लगी थी. कुछ लोग एक बाबा को पकड़ लाये थे . बाबा को देख कर मैं दंग रह गया क्योकि यह तो वही बाबा था जो मुझे मंदिर तक ले गया था. मेरी हालत देख कर बाबा ने मुस्काराते हुये मेरे हाथ में एक पत्थर का टुकड़ा दे दिया और उसे तब तक दबाये रखने को कहा जब तक कि वह चला न जाये. इशारे ही इशारे में बाबा ने मुझे सख्त चेतावनी भी दे डाली कि  मैं उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताऊ ......!'' बाबा के जाते ही जैसे में अपनी हथेली खोली तो मैने देखा कि वह उसी सूर्य मंदिर के रथ के पहिये का एक छोटा सा हिस्सा था जो इस कथा के काल्पनिक न होने की कहानी बयां करता है. आज इस घटना को कई दिन बीत गये लेकिन सूर्य मंदिर को लेकर लोग आज भी जिज्ञासु है कि आखिर सूर्य मंदिर यदि है भी तो कहाँ.........! मैं गांव वालो की भलाई के लिए मंदिर की लोकेशन तो नहीं बता सकता लेकिन यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस क्षेत्र में किसी न किसी पहाड़ी पर वह  स्थान जरूर है जहां भगवान भास्कर आज भी एक पल के लिए अपने रथ पर बैठने के लिए आते है. आज भले ही रथ न हो पर भगवान और भक्त की बेमिसाल बने इस सूर्य मंदिर का रहस्य कई और भी रहस्यो पर से पर्दा हटा सकता है.
इति,
रामकिशोर पंवार
पत्रकार - लेखक - कहानीकार
खंजनपुर बैतूल मध्यप्रदेश   मो. 9993162080
नोट :- कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है. 

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Betul. Betul district, about the history of the district more than half the population do not know what the district regard Age - period - the time when - when is. Assumptions about the place in the district and some knowledgeable historians and experts of the Department of Purattw to contemplate now reflect on the fact that drawing the Betul district of Madhya Pradesh tribal concentration and Purattw Preachin's history and mythology. Betul district, the relation Suryvansh how much Preachin history is connected. Betul district Tapti river flowing in the Adi Ganga - Bhadra - TAPI - Tapti - Tapti Dergno Nmo including what is called the birthplace Multapie - Mulatai in Betul district is located. Preachin to tell the history of the district we have some evidence are presented. Regard to the tribes living in the district a rough age and period duplicate is. During the Golden Age of Vidarbha after his marriage to Princess Damayanti discarded after wandering in the forests of the district Masod King taps located near the village pond but the fish tried roasting the fish in the pond to be jumping kernel. Popular stories tap into the region - in terms of Damayanti said that the high Pattten Kheda village Mangleraja beads - Damoti Queen Brua Baman story tells us, she hears him telling a story of sixteen, listen Mahalaxmi queen's Vidarbha area in the Mahabharata, which currently Akichaldra Chiackadra Keechaka king of the region was called the King's brother in law, which was vast. Keechaka Akda name Kaichkadharo Betul and neighboring state that is currently in Amravati district of Maharashtra engaged Chiakaldra Partwada area is called. King Keechaka Verat Divine Goddess of the total space of Betul district in the morning Preachin Parpattten Paton was in the village was known as the village. Mahabharata during the pre Atञatvasa Pancho Peadana King Keechaka Asaalberdi located in the state are in caves that still exists. Pandav son Sanaganie life because of the bad track Keechaka killed by Bhima Pandava son. Lord Sri Rama in Betul district Tretayaug the sun mother daughter Tapti river Tapti Sivadham Barahling setting on the banks of the twelve Sivalingo Patthro who was with the help of the Lord Vishwakarma is still present. There is also the place where Mother Sita Sita Ssnnanagar on the banks of Tapti bath used. Veno is the custard apple found in this area that is mentioned in Ramayana. Chaupeai mother Sita in the Ramayana states that the Lord very dear fruit Mora Puchti the law in the name of God the custard apple was named Sita. Kuruvansh founder of Betul district, the birthplace of King Kuru Tapti many of the parents as evidence Takadi Narada, Narada kunda, Sun reservoir, Dhermkund, sin reservoir, Ashnekund, Tapti birthplace of seven reservoir is present in Betul district. Betul district is still the most lingam Tapti River, which is evidence that Ravana did penance son Mehanath difficult side of the Tapti. The region of the state's share of Ravana Mehanath Balashali son is so even in the native villages today Mehanath - Ravana - Kuanhkaaran worship. Deoalhat Tapti River is a place called River located in the center tunnel where the Lord made the heavens were departing. Purna Chandra daughter in the district which is also the birthplace Pushpakarni Heisadehi have it. Betul district Preachin history proves the fact that the sun and the two Dev Chandravansh girls place of origin in the district and the district they can get to get to Bhusawal. Betul district, many of whom also remains Preachin need today to understand and test.Betul district Awakening Forum Tapti Tapti mother mother daughter glory of the sun people - people strive to reach. Jizasu person ever to get any information can contact. Net in the name of glory and the Tapti Tapti Kathayean has given many in the name of law. 

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