Sunday, March 27, 2011

सास बहू के साथ भेदभाव कर रही हैं भाजपा सरकार सूर्यपुत्री मां ताप्ती की उपेक्षा पूर्णा का होगा उद्धार

सास बहू के साथ भेदभाव कर रही हैं भाजपा सरकार
सूर्यपुत्री मां ताप्ती की उपेक्षा पूर्णा का होगा उद्धार
 बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार लगता हैं कि एकता कपूर के स्ट्रार प्लस एवं उत्सव पर आने वाले टीवी धारावाहिको ज्यादा देखती हैं या फिर वह फिल्मी दुनिया की बहुचर्चित स्वर्गीय ललीता पंवार की आत्मा को अपने शरीर में प्रवेश कर चुकी हैं। हाल ही में ऐसा तब देखने को मिला जब प्रदेश सरकार ने बैतूल जिले की दो देव कन्याओं ताप्ती एवं पूर्णा के साथ अपनी घटिया मानसिकता का परिचय दिया। पुराणो में उल्लेखीत कथा के अनुसार सूर्यवंशी में जन्मी मां ताप्ती का विवाह चन्द्रवंशी राजा सवरण के साथ हुआ था। दस नाते चन्द्रपुत्री मां पूर्णा भले ही ताप्ती की सहेली हो लेकिन रिश्तो में वह ताप्ती जी की बुआ सास कहलाती हैं। वैसे भी देखा जाता रहा हैं कि चन्द्र एवं सूर्य की आपस में पटरी नहीं बैठने के बाद भी ताप्ती एवं पूर्णा का बैतूल जिले से अलग - अलग दिशा में बहता जल प्रवाह भुसावल के पास इन दोनो सहेलियों के मिलन का हुआ हैं। प्रदेश सूर्यवंश में जन्मे प्रतापी राजा राम की रामभक्त भाजपा अब इस जिले में बहने वाली दो प्रमुख धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नदियो के साथ भेदभाव करके अपनी अलग पहचान बनाने में लग हैं। बैतूल जिले की भैसदेही तहसील मुख्यालय स्थित काशी तालाब पुष्पकरणी से निकलने वाली चन्द्रपुत्री मां पूर्णा नदी जिसमें कभी वर्षभर पानी कल-कल कर बहते पानी को सहेज कर रखने के लिए एक मास्टर प्लान को लागू करने जा रही हैं। वैसे तो बैतूल जिले की सभी प्रमुख नदियों में अक्टुम्बर माह के समाप्त होते ही जल का प्रवाह दम तोडऩे लगता है। बैतूल जिले में ताप्ती 250 किलोमीटर तथा पूर्णा 90 किलोमीटर बहती हैं। इस समय जिले में करीब 90 किमी बहने वाली पूर्णा नदी के पुनर्जीवन के लिए प्रयास शुरू किए गए हैं। जिसमें करीब 67 करोड़ रूपए का प्लान तैयार किया गया है। तीन साल की अवधि में यदि इस प्लान पर सही तरीके से काम हुआ तो पूर्णा फिर से दुध की धारा के रूप में बहना शुरू हो लाएगी। सप्तऋषियों की प्यास बुझाने धरती पर आई पूर्णा सप्त ऋषियों के मन में आई खोट के चलते गाय के रूप में प्रगट होकर दुध की धारा बहाती हुई बैतूल जिले की सीमा से बाहर होकर भुसावल में ताप्ती से मिल गई। सरकारी मास्टर प्लान के तहत नदी के उपचार के लिए चुनने का कारण यह है कि नदी में बेस फ्लो स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। जलग्रहण क्षेत्र में उच्च रिसन क्षमता है। इसलिए कंटूर ट्रेंच, कंटूर बोल्डर वॉल, गली प्लग संख्या, कंटूर बंड मेढ़ बंधान, सोक पिट, खेत-तालाब, चेकडैम, स्टापडैम, ड्राप स्पिल वे, बोरीबंधान, तालाब, परकोलेशन टेंक, पुराने चेकडैम सुधार, पुराने तालाबों का सुधार, रिचार्ज साफ्ट, डाइक सहित अन्य तरीकों से यह उपचार का काम किया जाएगा। नदी के उपचार के लिए जिस फार्मूले को तैयार किया गया है उसमें आधारभूत जानकारी का संकलन किया जाएगा। इसके साथ ही परियोजना क्रियान्वयन दल द्वारा संपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र एवं नदी पथ का भ्रमण व सर्वेक्षण, ग्रामीण सहभागी समीक्षा के माध्यम से उपलब्ध संसाधनों एवं प्रस्तावित कार्यो की आयोजना, वाटर बजट एवं जल संरक्षण बजट तैयार करना, परिवार सर्वेक्षण एवं नेट प्लानिंग के माध्यम से प्रति खसराबार जल संरक्षण एवं जल संवर्घन संरचनाओं गतिविधियों का चयन, तकनीकी सर्वेक्षण एवं कम्प्यूटर के माध्यम से नक्शों एवं मानचित्रों का डिजीटलाईजेशन तकनीकी प्राक्कलन एवं स्वीकृति प्राप्त करना एवं डीपीआर तैयार कर ग्राम जनपद व जिला पंचायत से अनुमोदन कर तकनीकी स्वीकृति प्राप्त करना शामिल है। क्षेत्र के भौगोलिक स्थिति एवं भूमिप्रकार को ध्यान में रखकर जो रणनीति बनाई गई है। उसमें भूू जलस्तर में वृद्धि के लिए ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में अधिक से अधिक मृदा एवं जलसंरक्षण के काम किए जाएंगे। वहीं बेस फ्लो का स्तर ऊपर उठाने के लिए मध्य क्षेत्र में जलसंरक्षण एवं संग्रहण संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। पूर्णा नदी के जलसंग्रहण और भूजल रिचार्ज संरचनाओं का निर्माण किया जाएगा। पूर्णा नदी के उपचार के लिए मनरेगा से 1033.150, आदिम जाति कल्याण विभाग से 450, जलसंसाधन विभाग से 950, आईटीडीपी भैंसदेही से 480, बीआरजीएफ बैतूल से 250, जन सहभागिता से 152 और राजीव गांधी जलग्रहण मिशन से 15 लाख रूपए की राशि की व्यवस्था की जा रही है। जिसमें उपचार का कार्य किया जाएगा। नदी उपचार के लिए विभिन्न स्तर पर समितियों का गठन और उनके प्रशिक्षण के लिए भी अलग-अलग व्यवस्थाएं प्लान में शामिल है।पूर्णा नदी के तमाम उपचार के बाद यह माना जा रहा है कि 31 मार्च 2013 की स्थिति में चयनित जलग्रहण क्षेत्र के उभयनिष्ठ बिंदू पर पर्याप्त जलप्रवाह के रूप में निश्चित रूप से पूर्णा नदी को पुर्नजीवन मिलेगा। जिससे करीब सात हजार हेक्टेयर सिंचाई के रकबे में वृद्धि होने से 800 हेक्टेयर कृषि का रकबा बढ़ेगा। वहीं 28 ग्रामों में भूजलस्तर में वृद्धि होगी। क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण होगा।इस प्लान की प्रस्तुति मुख्यमंत्री के समक्ष हो चुकी है और उन्हें भी यह प्लान बेहद पसंद आया है और इस पर काम भी शुरू हो चुका है।कुछ इसी तरह कह महत्वाकांक्षी योजना ताप्ती को लेकर जल संसाधन विभाग एवं आरइएस विभाग ने भी बनाई थी जिसके तहत ताप्ती नदी के 250 किलोमीटर के बहाव क्षेत्र में 25 छोटे स्टाप डेप एवं 250 से अधिक ओव्हरफ्लो रपटो के निमार्ण की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी लेकिन योजना को मूर्त रूप मिलता उसके पहले ही योजना ठंडे बस्ते में चली गई। बैतूल जिले के राजनेताओं एवं जनप्रतिनिधियों के सूर्यपुत्री मां ताप्ती के प्रति उपेक्षाजनक व्यवहार के चलते बैतूल जिले में अपार जल क्षमता वाली ताप्ती में भले ही ऊपरी जल प्रवाह बंद हो जाता हैं लेकिन 250 किलोमीटर के क्षेत्र में करीब साढे चार सौ से अधिक ऐसे डोह एवं गहरे गडडे हैं जो कि दो सौ से ढाई सौ फिट गहरे हो सकते हैं जिसमें साल भर पानी भरा रहता हैं। यह कोई साधारण बात नही हैं कि हर आधा किलोमीटर पर ताप्ती में कोई न कोई जल सग्रंह के सैकड़ो विशाल भंडार हैं , जहां पर बारहमास पानी की कमी नहीं होती हैं। भले ही ताप्ती नदी ऊपरी तह पर बह नही पाती हैं लेकिन पूरी की पूरी नदी सुखी नहीं पाती हैं। नदी का आंतरिक बहाव मई जून मास में भी देखने को मिलता हैं जअ कोई नदी के बीचो- बीच पोखर या गडड खोदता हैं। ताप्ती के जल संग्रहण के पीछे की कहानी भले ही पिता एवं पुत्री के स्नेह का प्रतिक हो लेकिन बैतूल जिले में यदि ताप्ती का जल प्रवाह यदि छोटे - छोटे रपटे डेमो या ओव्हर फ्लो डेमो को बना कर किया जाता हैं तो ताप्ती नदी के किनारे बसे सैकड़ो गांवो एवं हजारो हैक्टर भूमि का उद्धार हो सकता हैं लेकिन जिस प्रदेश सरकार को ताप्ती के नाम मात्र से चिढ़ हो वह भलां उस नदी को क्यों महत्व देगी जिसके महात्म के आगे गंगा - यमुना तक नतमस्तक हैं। प्रदेश गान में अपनी उपेक्षा के बाद अब नदी के जल संग्रहण के प्रति उपेक्षित बहन के प्रति शनि महाराज की नज़रे कहीं शिवराज सरकार के पतन का कारण न बन जाए। वैसे भी शनि महाराज लोहे के रूप में प्रदेश सरकार के मुखिया के डम्पर कांड पर अपनी नज़र केन्द्रीत करने वाले हैं।



मामा मेरी शादी करवा दो , मेरी शादी करवा दो
शिवराज सिंह चौहान के भांजे - भांजियों की नौ माह में नहीं हुई एक भी शादी
 बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश सरकार के मामा शिवराज के भांजे एवं भांजिया इन दिनो बस एक ही गाना गा रहे हैं कि मामा मेरी शादी करवा दो , मेरी शादी करवा दो ...... प्रदेश सरकार की बहुचर्चित मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का बैतूल जिले में क्या हश्र हो रहा हैं वह इस बात से पता चल जाता हैं कि पिछले नौ माह में एक भी शादी नहीं हो सकी हैं। गरीबों के हाथ पीले कराने के लिए शुरू की गई मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री कन्यादान में जिले के अधिकारी रूचि नहीं दिखा रहे हैं। इसका नतीजा है कि शादी के कई मुहुर्त बीत जाने के बाद भी जिले में नौ महीने के अंदर योजना के तहत एक भी शादी नहीं हुई है। मुख्यमंत्री कन्या दान योजना के तहत हर वर्ष गरीब युवक-युवतियों के सामूहिक विवाह कराए जाते हैं। इस योजना के तहत विवाह कराने में अधिकारियों की रूचि नहीं होने की वजह से पिछले नौ महीने में एक भी विवाह नहीं हो सका है। वर्ष 2010-11 में जिले की प्रत्येक जनपदों को 100-100 एवं नगर पालिका, नगर पंचायत को 50-50 शादी कराने का लक्ष्य दिया गया था। कुछ जनपदों को छोड़ दिया जाए तो कहीं पर भी लक्ष्य की पूर्ति नहीं हो सकी है। इस वर्ष भी योजना के तहत शादी को लेकर प्रचार-प्रसार नहीं किया जा रहा है।मुख्यमंत्री कन्या दान योजना के तहत वर्ष 2010-11 में अप्रैल माह में 207, मई में 597 एवं जून माह में 08 शादियां हुई हैं। इसके बाद से एक भी शादी नहीं हुई है। जबकि शादियों के लिए माह का बंधन निश्चित नहीं किया गया है फिर भी सामाजिक न्याय विभाग की महिला अधिकारी को सरकारी गाडिय़ो में घुमने से फुर्सत नहीं हैं। सरकारी नियमो को ताक में रख कर पूरे जिले में बहुचर्चित इस महिला अधिकारी की बैतूल की सड़को पर ड्रायविंग को लेकर कई बार सवाल उठे हैं लेकिन अपने विभाग के मूल कार्यो से मुंह चुराती इस महिला अधिकारी की कथित दबंगता के चलते कोई भी उनसे यह सवाल करने की स्थिति में नहीं हैं कि पिछले नौ माह में जिले में एक भी मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत किसी गरीब , बेबस , लाचार , कन्या के हाथ क्यों पीले नहीं हो सके हैं। वैसे देखा जाए तो मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए कोई धार्मिक तीथी या मुहुर्त का कोई बंधन नहीं हैं उसके बाद कभी भी कराई जा सकपे वाली शादी के प्रति महिला अधिकारी का इस तरह का रवैया सरकारी योजना का पलीता निकालने के लिए काफी हैं। कराई जा सकती है। बीते 9 माह में ज्योतिषी विद्यानुसार कई मुहुर्त आकर निकल चुके हैं। बैतूल जिले में ऐसा भी नही हैं कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत गरीब विवाह नहीं करना चाहते। आवेदन करने के बाद भी शादी नहीं करवाई जा रही है। नगर पालिका में ही इस समय पिछले वर्ष के पांच आवेदन पड़े हुए हैं। जिनकी आज दिनांक तक न तो शादी नहीं कराई गई है और न ही उन्हे भविष्य में शादी करवाने का कोई लिखित या मौखिक आश्वासन मिला है। कन्यादान योजना के तहत वर-वधू को दी जाने वाली सामग्री की राशि भी शासन ने बढ़ा दी है। अब शादी के लिए शासन से 10 हजार रूपए की राशि दी जाएगी। जिसमें वर-वधू को नौ हजार का सामान और एक हजार रूपए शादी का खर्चा रहेगा। योजना के तहत अब शादी रचाने वाले को सिलाई मशीन भी दिया जाना सुनिश्चित किया गया है। पूरे मामले को लेकर जब सुचिता बेक तिर्की, उपसंचालक सामाजिक न्याय विभाग बैतूल से सम्पर्क किया गया तो उनका पलटवार था कि जब कोई आवदेन ही नहीं मिले हैं तो किसकी - किससे शादी करवा दू ......? जब उन्हे आवेदनो की जानकारी दी गई तो फिर उनका गोलमाल जवाब था कि उन्हे पता नहीं चला हैं। मेरे पास आवेदन आएगें तो उन पर विचार किया जाएगा। जब सामाजिक न्याय विभाग को आवेदन करना हैं तो फिर नगर पालिका , नगर पंचायते , जनपद पंचायते , ग्राम पंचायतो द्वारा फिर क्यों आवेदन मांगे जा रहे हैं। इधर जिला प्रशासन का कहना हैं कि जिले के सभी जनपद सीईओ को शादी के लिए युवक -युवतियों के आवेदन लेने के निर्देश दिए हैं। अप्रैल माह में शादी कराई जाएगी।




डाटा एन्ट्री आपरेटर की चयन सूची जारी
बैतूल, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) तथा बैकवर्ड रीजन ग्रांट फण्ड योजनान्तर्गत डाटा एन्ट्री आपरेटर संविदा की चयन सूची जारी कर दी गई है। परियोजना अधिकारी जिला पंचायत श्री एस.के.मलिक से प्राप्त जानकारी के अनुसार मनरेगा में दस एवं बी.आर.जी.एफ. में आठ अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। उक्त पदों की प्रतीक्षा सूची भी जारी की गई है। चयनित सूची के अनुसार मनरेगा अंतर्गत अनारक्षित वर्ग पुरूष में श्री सतीष कुमार पंवार, श्री सुनील माथनकर तथा तापीदास च$ढोकार तथा अनारक्षित वर्ग महिला में श्रीमति सोनिया खत्री व श्रीमति रानी दुबे का चयन किया गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग में श्री नगेन्द्र कुमार गोरिया अनुसूचित जनजाति वर्ग में श्री श्रवण कुमार क बडे, श्री श्रीराम क बडे, श्री स्वप्निल वाकोडकर, श्री विरेन्द्र कुमार वाघमारे का चयन किया गया है। उक्त पदों की प्रतीक्षा सूची के अनुसार अनारक्षित वर्ग में श्री विजय कवडकर, श्री महेश कुमार परमार, श्री दिलेश पंवार, श्री राजेश पंवार, श्री अनंत कुमार श्रीवास्तव, श्री दिलीप कुमार नावंगे तथा अन्य पिछड़ा वर्ग में श्री महेश कुमार परमार एवं राजेश पंवार को प्रतीक्षा सूची में रखा गया है। बैकवर्ड रीजन ग्रांट फण्ड योजनान्तर्गत अनारक्षित वर्ग में पुरूष हेतु श्री सतीष कुमार पंवार, श्री संजय खातरकर, श्री श्रवण कुमार क बडे, तथा अनारक्षित महिला हेतु श्रीमति सोनिया खत्री का चयय किया गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षित पद पर श्री नरेन्द्र कुमार गोरिया, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पदों पर श्री जितेन्द्र कुमार आरसे तथा श्री संतोष खातरकर तथा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पद पर श्री मंगलेश कुमार सोनारे का चयन किया गया है। उक्त पदों की प्रतीक्षा सूची में अनारक्षित श्रेणी के लिये श्री विजय कवडकर, श्री दिलीप पंवार, श्री राजेश पंवार, श्री कपिल कुमार राठौर, श्री अमित कुमार मालवीय, श्री रंजीत सिंह राठौर का नाम है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति की प्रतीक्षा सूची में श्री विनोद कुमार उबनारे, श्री आशीष कुमार उपराले, श्री विकास अतुलकर तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की प्रतीक्षा सूची में श्री राजेश पंवार एवं श्री कपिल कुमार राठौर का नाम है। गौरतलब है कि उक्त पदों के लिए लिखित परीक्षा, कौशल परीक्षा एवं साक्षात्कार का आयोजन किया गया है।


 कमल का फूल नही चिंगारी हैं, हम भारत कांग्रेसी नारी हैं
शिवराज सरकार के खिलाफ कांग्रेसी महिला नेत्रियों ने हल्ला बोला
बैतूल, शेख गफ्फार , कहते हैं कि पति - पत्नि गृहस्थी रूप रथ के दो पहिए के समान हैं। मध्यप्रदेश के बहुचर्चित सारनी स्थित सतपुड़ा ताप बिजली घर के कामगारो एवं कांग्रेसी विचारधारा से जुड़े श्रमिक संगठनो के नेताओं एवं कर्मचारियों की पत्नियों ने अपने पति के भविष्य में होने वाले रिटायरमेंट के बाद उत्पन्न होने वाली समस्याओं को लेकर घर का चुल्हा चौका छोड़ कर अजीबो - गरीबो स्टाइल में हल्ला बोल प्रदर्शन कर डाला। सभा में वक्ता से लेकर संचालक तक महिलाएं ही थी और सभी ने कमल छाप भाजपा सरकार को जमकर कोसा और नारेबाजी की। सारनी ताप बिजली घर के मान्यता प्राप्त श्रमिक संगठनो के नेताओं की श्रीमति जी अपना घर का चूल्हा-चौका छोड़कर अन्य कर्मचारी परिवारों की महिलाओं के साथ सारनी नगर की सड़कों पर उतर आईं। हाथों में तख्तियां और बैनर लेकर महिलाएं कर्मचारियों की पत्नियों और परिवार की महिलाओं ने सबसे पहले सारनी ताप बिजली घर के बिजली प्लांट में हल्लाबोला और फिर आमसभा की और रैली निकालकर मुख्यमंत्री के शिवराज सिंह चौहान के नाम पर बकायदा नाम ज्ञापन तक सौपा। महिलाएं बिजली कर्मचारियों की सेवा शर्ते व पेंशन की मांग का समर्थन को लेकर प्रदर्शन एवं नारेबाजी कर रही थीं। उल्लेखनीय हैं कि बिजली प्लांट के एक दर्जन कर्मचारी संगठन मिलकर संघर्ष समिति के माध्यम से मंडल से कंपनीकरण के बाद कर्मचारियों की सेवा शर्तें व पेंशन निर्धारण की स्थिति स्पष्ट करने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। 29 मार्च से उन्होंने अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर रखा है। प्रदेश के 40 हजार बिजली कर्मचारियों के हितों का हवाला देते हुए संघर्ष समिति भोपाल से लेकर कंपनी मुख्यालय जबलपुर तक रैली, ज्ञापन व आमसभा के जरिए आंदोलन कर रही है। इस कड़ी में सारनी मेें प्लांट कर्मचारियों के परिवार की महिलाएं सड़कों पर उतर आईं। महिलाओं ने पहले प्लांट के गेट नंबर सात पर आमसभा की। 500 से अधिक महिलाएं रैली के रूप में कर्मचारियों के साथ रैली के रूप में चीफ इंजीनियर ऑफिस पहुंची। यहां मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन चीफ इंजीनियर आरके दाते को दिया और कर्मचारियों की मांगें स्वीकार करने की बात कही। कांग्रेसी महिला नेत्रियां भाजपा सरकार पर खूब गरजी और उन्हे बहुंत कुछ बुरा भला तक कहां। रैली एवं सभा में शामिल महिलाएं मंडल में कार्यरत अपने पतियों एवं अन्य कर्मचारियों के समर्थन में सड़को पर जब उतरी तो नजारा ही कुछ और था। पहले तो ऐसा लगा रहा था कि किसी उत्पीडऩ के मामले को लेकर रैली निकाली जा रही हैं लेकिन करीब आने पर पता चला कि महिलाओं अपने आने वाले भविष्य को लेकर चिंतित होकर अपनी भड़ास को निकालने आई हैं। अकसर शांत एवं सरत तथा सहज दिखने वाली महिलाएं घायल शेरनी की तरह दहाड़े मार रही थी। इन सभी नेत्रियो ने पहले प्लांट के द्वार पर और बाद में नगर के शॉपिंग सेंटर में सभाएं की। दोनों जगह महिलाओं ने कर्मचारी हितों को लेकर कंपनी प्रबंधन और सरकार को तमकर कोसा। सभा को महिला कांग्रेस नेत्री श्रीमति ममता पांडे, सावित्री सिंह, प्रमिला पांसे, नीलू दुबे, नम्रता तिवारी, सुमन कुरानिया, गीता बड़घरे और वसुंधरा गायकवाड़ सहित अन्य महिलाओं ने संबोधित किया। उनका कहना था कि वे हर कदम पर कर्मचारियों के साथ हैं। कर्मचारियों और उनके परिवारों के भविष्य से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

मध्यप्रदेश के भाजपाई पंचायती राज का एक कड़वा सच
सरपंच , सचिव, पंचायत इंस्पेक्टर , जनपद सीइओ तक बने करोड़पति
बैतूल, रामकिशोर पंवार: मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान का ग्राम स्वराज , सूराज तथा सरकारी कागजी पंचायती राज यदि किसी जिले में सार्थक सिद्ध हुआ हैं तो निश्चीत तौर पर मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का नाम अव्वल आता हैं। बैतूल जिले में पंचायती राज के सफल सिद्ध होने में रीढ़ की हडड्ी बने ग्राम पंचायतो के सरपंच , सचिव और पंचायत इंस्पेक्टर जो कि इस समय बैतूल जिले के सबसे तेजी बनने वाले करोडपतियों में शामिल हैं। बैतूल जिले के एक पंचायत इंस्पेक्टर को पंचायती राज ने महज 17 सालों में साइकिल से हेलीकाप्टर खरीदनें की स्थिति में ला दिया हैं। यूं तो बैतूल जिले की 558 पंचायतो को दस जनपदो के अधिनस्थ रखा हैं। लेकिन दो जनपदो का एक मालिक बने हैं जिले के मात्र 5 पंचायत इंस्पेक्टर जिनकी माली हालत आज की स्थिति में बैतूल के मामाजी ज्वेलर्स और विनोद डागा की स्थिति में लाकर कर खडा कर दिया हैं। बैतूल जिले में इस समय 5 ग्राम पंचायत इंस्पेक्टर के पास औसतन प्रति इंस्पेक्टर सवा सौ पंचायते हैं। जबकि एकसीइओ के पास बमुश्कील 80 भी ग्राम पंचायते नहीं हैं। मिली जानकारी के अनुसार बैतूल जिले के भीमपुर विकासखण्ड के रतनपुर ग्राम के रहने वाले ग्राम पंचायत सहायक के रूप में 17 साल पहले भर्ती हुए पंचायत कर्मी के पास एक टूटी - फूटी साइकिल थी। आज के समय इस पंचायत इंस्पेक्टर के तथाकथित परीश्रम के चलते उनके पास जेसीबी मशीनो , रोड रोलरो , टेक्ट्रर ट्रालियां , जीपे , कारे और न जाने कितने वाहनो का भंडार हैं। पंचायत इंस्पेक्टर के पुत्र की अपनी प्रायवेट कंस्टे्रक्शन कपंनी भी हैं। यह आरोप कोई और लगता तब तो ठीक था लेकिन भाजपा समर्थक जनपद पंचायत की उपाध्यक्ष श्रीमति परवती बड़ोदे एवं उनके पुत्र भाजपा नेता संतोष बड़ोदे ने उक्त सनसनी खेज मामले को सामने लाकर सनसनी पैदा कर दी हैं। कांग्रेस समर्थक जनपद अध्यक्ष सुनील भलवाी का कहना हैं कि पूरी जनपद में बीस करोड़पति तथा पचास लखपति सचिव मिल जाएगें जिन्होने आज तक अपनी चल एवं अचल सम्पत्ति घोषित नहीं की हैं। जिले की इस कोरकू बाहुल्य जनपद क्षेत्र में सचिवो एवं पंचायत इंस्पेक्टरो की अपनी एक तरफा दादागिरी चलती हैं। जनपद की अधिकांश ग्राम पंचायतो से अपने लिए विभिन्न मदो के फर्जी कार्यो के अपने परिजनो के नाम पर डंके की चोट भुगतान  पर पा रहे इन लोगो का कोई बालबांका नहीं कर पा रहा हैं। अधिकांश सचिवो एवं पंचायत इंस्पेक्टरो की की एक जेब में पंचायती मंत्री गोपाल भार्गव है तो दुसरी जेब में बैतूल से लेकर भोपाल तक की राजनीति हैं। इन सभी पंचायत कर्मियों का जलजला यह हैं कि वे किसी भी नेता , मंत्री , संत्री , अधिकारी का दो मिनट में काम लगा देते हैं। इन सभी धनाढय़ पंचायत कर्मियों की दाद देनी चाहिए कि उनके पास जो कुछ भी हैं वह उनका कुछ भी नहीं हैं सब कुछ उनके बेटे परिवार के सदस्यों एवं अन्य का हैं।

चार सौ रूपए किलो के देशी शुद्ध घी के साथ
चालिस रूपए किलो कोदो - कुटकी की रोटी खाना पड़ा महंगा
बैतूल, रामकिशोर पंवार: कौन कहता कि भारत गरीब है या भूखा हैं...? आप माने या न माने लेकिन सच हमेशा कड़वा होता हैं। बैतूल जिले के एक आदिवासी मनोहर के परिवार के तीन सदस्यों को गर्मी के दिनों में चार सौ रूपए किलो के शुद्ध देशी घी को चालिस रूपए किलो के कोदो - कुटकी की रोटी के साथ नमक और मिर्च लगा कर खाना इतना मंहगा पड़ा की जान पर आ पड़ी। बैतूल जिले के रानीपुर थाना के एक छोटे से गांव हीरावाड़ी के एक ही परिवार के तीन सदस्य इस समय जीवन और मृत्यु  के बीच झूल रहे हैं। लजीज खाने के शौक में विजय आत्मज मनोहर , किरण बाई जौजे दिलीप एवं अनुसईया जौजे मनोहर ने कोदी की रोटी पर घी लगा कर लाल मिर्च और नमक लगा कर खा तो लिया लेकिन बाद में जब विषाक्त बने खाने के चक्कर में जिला चिकित्सालय में भर्ती हुए तीन लोगो के स्वास्थ में कोई सुधार नहीं आ सका हैं। वैसे तो पूरे परिवार के छै सदस्यों ने भोन किया था। अपने खाने-पीने के मामले में थोड़ी सी लापरवाही जान की दुश्मन बन जाती है। इस समय बैतूल जिले में दूषित भोजन की वजह से बीमार होकर ग्रामीणो का जिले के विभिन्न अस्पतालों में आना शुरू हो गया हैं। हाल ही में झल्लार थाना क्षेत्र के ग्राम हथनानिझरी में दही और गोभी की सब्जी खाने से रात एक ही परिवार के दस लोग बीमार हो गए। वहीं एक अन्य घटना में रानीपुर थाना क्षेत्र के ग्राम हीरावाड़ी में कोदो की रोटी खाने से छह लोगों की तबीयत बिगड़ गई जिसमें तीन की हालत ज्यादा खराब बनी हुई है। ग्राम हथनाझिरी निवासी झिंगू पिता संतू ने बताया कि रात में दही और गोभी की सब्जी के साथ भोजन किया था। भोजन करने के कुछ देर बाद परिवार के सभी सदस्यों की हालत बिगडऩे लगी। एक के बाद एक सभी दस सदस्यों को उल्टी शुरू हो गई। उल्टी होने से दो बच्चे बेहोश भी हो गए। परिवार के सदस्यों की तबीयत बिगडऩे की खबर गांव में लगी तो ग्रामीण घर आ गए। ग्रामीणों ने ही तत्काल इसकी जिला अस्पताल में सूचना दी। एम्बुलेंस की सहायता से सभी को अस्पताल में भर्ती कराया है। पीडि़तों के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। परिवार के मुखिया झिंगू ने बताया कि बताया कि पड़ोस में एक व्यक्ति के घर से दही लाया था और खुद के घर में भी चार दिन पहले दही जमाया। रात में दोनों ही दही मिलाकर गोभी की सब्जी के साथ परिवार के सदस्यों ने खाया था। दही में ही खराबी के कारण परिवार के सदस्य बीमार हुए हैं। वहीं दही नहीं खाने के कारण बड़ी बहू की तबीयत ठीक है। वहीं जिस घर से दही लाया था उनके परिवार के सदस्यों की भी तबीयत ठीक है। दही खाने से दस वर्षीय गायत्री, आठ वर्षीय नितेश, छह वर्षीय कृष्णा, उन्नीस वर्षीय संध्या, सोलह वर्षीय दीपक, उन्नीस वर्षीय वंदना, बारह वर्षीय वर्षाय, 48 वर्षीय झिंगू, 45 वर्षीय बाया, 18 वर्षीय तुलाराम बीमार हो गए। गर्मी का मौसम आते ही जिले में फुड पाइजनिंग की घटनाओं में बढ़ोतरी हो गई है। इसके पहले भी पाढर के प्राथमिक स्कूल में बच्चों को दिए जाने वाले भोजन को चखने के बाद रसोइया बीमार हो गई थी। वहीं घोड़ाडोंगरी में भी आधा सैकड़ा आशा कार्यकर्ता भोजन से बीमार हो चुकी हैं। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह हैं कि दोनो ही आदिवासी परिवार के 13 सदस्यों के इस संवेदशनील मामले में प्रशासन का नकारात्मक रवैया सामने आया हैं। पूरे मामले में कहीं न कहीं स्वास्थ विभाग की लापरवाही भी कम नहीं रही। बरहाल जिले में विषाक्त भोजन के मामले न हो इसलिए लोगो में जागरूकता लाने की जरूरत हैं।

Saturday, December 25, 2010

Maa Tapati Kee Aash







                                    आखिर कब बुझेगी मेरे गांव की प्यास ,
                             माँ ताप्ती के पावन जल की है सभी को आस........!
                                             रामकिशोर पंवार
आज अचानक जब मैने एक न्यूज चैनल पर अपने के लोगो को नारे लगाते बैनर थामें देखा तो मैं कुछ पल के लिए सकपका गया। आखिर ऐसा क्या हो गया मेरे गांव में जिसके चलते टी वी चैनलो पर मेरे गांव को लेकर एंकर लम्बे - चौड़े कसीदे पढ़ रहा है। न्यूज चैनल पर चल रही खबर से मुझे पता चला कि मेरे गांव के लोगो को उनके सुखे कुयें और खेत - खलिहान की बेबसी आन्दोलित कर गई। मेरा गांव में पानी को लेकर उस समय से गांव के लोग नेताओं के चक्कर पर चक्कर लगा कर घनचक्कर हो गये जब बात चली थी कि जगदर पर बड़ा डैम बनेगा और उसकी नहरे रोढ़ा - बाबई - सेलगांव तक पहँुचेगी लेकिन आज तीस - पैतीस साल हो गये रोंढ़ा की तड़पती और तरसती धरती पर सूखी नहरे तक नहीं बनी जिसमें हम बरसात का पानी रोक सके। जगधर का बांध बैतूल जिले के उन धन्नासेठो ने नहीं बनने दिया जिसकी जमीन बांध और नहरे में जा रही थी। आज जगधर का बांध तो जरूर बन गया लेकिन उसकी नहरे तो बैतूल बाजार तक आते - आते ही सूखने लगती है। गांव में पहले सुबह के चार बजे पनघट पर पानी भरने के लिए माँ - बहने - बहु - बेटी जग जाती थी क्योकि उन्हे पानी भर कर सुबह काम धंधा पुरा करके दुसरे के घर या खेत पर काम करने जाना पड़ता था लेकिन आज तो दिन भर पनघट पानी भरने के लिए कतार लगे खड़े लोगो को देख कर ऐसा लगता है कि मेरे गांव की कोसामली और जामावली के कुयें में पानी ही नहीं बचा है। पहले गांव के तीन कुयें पूरे गांव की प्यास को बुझाने के लिए पर्याप्त थे लेकिन अब तो गांव में जहाँ - तहाँ लगे ग्राम पंचायत के नलो का पानी भी पूरे गांव की प्यास को बुझा नही पा रहे है। कल तक मेरे गांव की कोसामाली और जामावली पूरे गांव की प्यास बुझाती थी लेकिन कोसामाली और जामावली के बुढ़े हो चुके कुओं के हालातो पर तो मुझे भी रोना आता है। जिस कोसामाली पर सुबह से लेकर शाम तक पनहारी पानी के मटको और बर्तनो के साथ पानी भरने आया करती थी आज वहीं पनहारी अपने गांव की गलियों में गांव की पंचायत के द्धारा लगवाई गई नल योजना नल और बिजली पर आश्रित हो चुकी है। पूरे गांव को एक साथ पानी की सप्लाई तो दूर एक मोहल्ले को भी पूरा पानी पिलाने का आज उस नलकूप योजना पर भरोसा करना याने सुबह से शाम तक प्यासे मर जाने के समान है। मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला जो कभी सी.पी.एण्ड बरार में आता था उसी जिला मुख्यालय से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी मेरा गंाव रोंढ़ा है। बैतूल से हरदा रोड़ कहिये या फिर बैतूल अमरावती मार्ग इन दोनो मार्ग पर भडूस गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर बसा मेरा गांव आज भी उस पंगडंडी से भी गया - गुजरा हो गया है जिस पर पैदल चलना आसान होता है। गांव में जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते है बैतूल से आठनेर मार्ग पर भोगीतेड़ा - तेड़ा होते हुये रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। इधर परसोड़ा होते हुए भी गांव को पंगडंडी गांव को जाती है। खेड़ी - सेलगांव - बावई  होते रोंढ़ा पहँुचा जा सकता है। गांव को आने एवं जाने के लिए जितनी पंगडंडी है वह आज भी वैसी ही है जैसे कभी मेरे बचपन में हुआ करती थी। गांव के समग्र विकास की बाते करने वालो को आज मेरे गांव के युवा वर्ग ने अगर बहिष्कार का जूता दिखाया है तो नि:सदेंह इस काम के लिए मैं और मेरा पूरा गांव उस युवा पीढ़ी को बधाई देता है। आखिर कोई तो माई का लाल इस गांव को मिला जो गांव आकर आजादी के 61 सालो में मेरे गांव के भोले - भाले मतदाताओं को लालीपाप देकर वोट मांगने के बहाने झुठी तसल्ली देकर ठगता चला आ रहा था उन ठगो को जूता दिखा कर डराना गांव में आई जन जागृति का प्रतीक है। दादा बताते थे कि उनके परदादा से लेकर उनकी कई पीढिय़ो से गांव आज भी ज्यो का त्यो ही है। लोग आते है , चले जाते है। कुछ मिलाकर मेरा गांव फागुन के मेले की तरह हो गया है। जहाँ  पर लोग केवल घुमने के लिए आते है । जिंदगी भी एक मेला की तरह है और आदमी रस्सी पर करतब दिखाता नट की तरह हो गया है। थोड़ी से भूल - चुक हुई कि धड़ाम से गिर गया.... ऐसे  में सब कुछ खो जाने का डर रहता है। इसलिए लोग संभल - संभल कर चलने लगे है। गांव को भी लोगो ने उसी मेले की रस्सी की तरह समझ रखा है तभी तो वह उस पर चल कर किसी भी प्रकार के रितब दिखाने की रिस्क नही लेना चाहता है। मेरे गांव के लोग बम्बई - दिल्ली - कलकता और मद्रास जैसे महानगरो में बस गये लेकिन उन्हे गांव की याद नहीं आती है । जब भी उन्हे गांव के बारे में कुछ बोला जाता तो उनका जवाब रहता है कि ''बच्चो का भविष्य देखना है .....!''  ''आखिर उस गांव में हमारा रहा क्या.... ?'' अब ऐसे लोगो को कोई कैसे समझाये कि जननी से बड़ी होती मातृभूमि और उससे बड़ी होती है जन्मभूमि .... वैसे देखा जाए तो रोंढ़ा मेरा गांव तो नही रहा यह बात अलग है कि वह हमारा गांव है क्योकि इस गांव से मेरे पापा का बचपन जुड़ा है। रोंढ़ा मेरे पापा की जन्मभूमि होने के कारण उन्होने ही मुझे अपने इस गांव से जोड़े रखा। आज भले ही उस गांव में हमारा मकान भी नही रहा लेकिन वह चम्पा का पेड़ पापा के बचपन की एक ऐसी निशानी है आज पूरे गांव के साथ प्यासा है। पहले लोग माता मैया के चबुतरे पर हर रोज पानी चढ़ाने आया करते थे। सुबह स्नान के बाद कुओं से लाया गया शुद्ध पानी का एक हिस्सा माता मैया के ऊपर अर्पित किया जाता था जिसके चलते उस चम्पा के पेड को भी पानी मिल जाता था और लहलहा उठता था लेकिन अब तो गांव के लोगो को यह तक पता नहीं रहता कि गांव के नल से पानी आयेगा या नहीं ......यही हाल गांव के कुओ का है जो गांव के कुयें कभी पूरे गांव को बरसात तक पानी पूराते थे आज वहीं कुओं का पानी दिवाली के बाद समाप्त होने लगता है। कहना नहीं चाहिये लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता। आजादी के 61 सालो में मेरे गांव का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ है। बैतूल जिले की सबसे पुरानी ग्राम पंचायत में गिना जाने वाला मेरा गांव जहाँ पर कभी सर्वोदयी नेता भुदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे के चरण कमल पड़े थे आज उसी गांव में कोई भी उस सर्वोदयी संत के एक भी आर्दश को अपनाने को तैयार नही है। आज गांव के आसपास लगी जना जागृति की आग की लपेट में सूरगांव - नयेगांव - सेहरा - सावंगा आ चुके है। अब गांव से लगी गांव से गांव के सुखे पड़े खेतो के भूसे जलने के बजाय गांव वालो के दिल दिमाग दहक रहे है। गांव का बचचा और बुढ़ा दोनो ही गांव के आसपास सूखे खेत - खलिहान को देकर आन्दोलित हो उठा है। अब मेरे गांव को माँ सूर्य पुत्री ताप्ती का जल ही तृप्त कर सकता है। मेरा माँ ताप्ती जन जागृति मंच के द्धारा लोगो को माँ ताप्ती से जोडऩे का सिलसिला अब मुझे अपने गांव को भविष्य में माँ सूर्य पुत्री ताप्ती से जुड़ता दिखाई देने लगा है। मेरे गांव के सूर में सूर मिलाने के जब सूरगांव आ गया है तब मैं कल्पना कर सकता हँू कि आने वाले कल में जब माँ ताप्ती का जल दुसरे प्रदेशो को मिलने के बजाये मेरे गांव और खेत खलिहानो तक पहँुचेगा तो आसपास के गांव को भी माँ ताप्ती का तपते आसमान के समय भी जल मिलने लगेगा। जब भोपाल तक भोपाली नेताओं के लिए माँ नर्मदा पहँुच सकती है तब मेरे गांव के लिए मेरी अराध्य माँ ताप्ती क्यों नहीं पहँुच सकती.....? अब हमें और हमारे गांव वालो को अपने साथ आसपास के दर्जनो को गांवो के लोगो को खड़ा करके मेघा पाटकर की तर्ज पर ताप्ती रोको आन्दोलन करना होगा। जब हमारी माँ के आँचल से हमारी प्यास नहीं बुढ सकती तो हम पड़ौसी दुसरे राज्यो की प्यास को भी नहीं बुझने देगें। आज शर्मनाक बात है कि बैतूल जिले के जिस माँ ताप्ती के पावन जल में अनेको साधु संतो - मुनियो एवं स्वंय भगवान श्री राम के पूर्वजो को मुक्ति मिली उसके लिए हमें जीते जी और मरने के बाद भी तरसना पड़े ऐसा नहीं होने दिया जायेगा। गांव के लिए गंवार के लिए सही लेकिन अब ताप्ती का जल पूरे बैतूल जिले के खेंत - खलिहानो और सुखे कुओ तथा बावलियों के अलावा प्यासे कंठो को मिलना चाहिये। ऐसे काम के लिए नेताओं और उनके दलो को आँखे दिखाना या उनकी वादाखिलाफी को गिनाना कोई संगीन अपराध नहीं है। गांव के आन्दोलन में मेरा पूरा तन - मन गांव को समर्पित है क्योकि आज मुझे हर मंगलवार और शनिवार माँ ताप्ती के पावन जन में स्नान - ध्यान करने के लिए जाना पड़ता है लेकिन यदि मेरे गांव को या आसपास के लोगो के पास माँ स्वंय कल - कल करती यदि आयेगी तो उनकी कई पीढिय़ो का कल्याण हो जायेगा। एक बार सारे मिल कर बोलो जय माँ ताप्ती की जिसकी राह देख रहे है रोंढा एवं आसपास के गांवो के लोग......

Tapati Jal

                                                    हास्य - परिहास
                                पंडित जी मेरे मरने के बाद , इतना कृष्ट उठा लेना
                                           मदिरा जल की जगह , ताप्ती का जल पिला देना
                                                       :- रामकिशोर पंवार
कल रात जब मैं रायपुर से छत्तिसगढ एक्सप्रेस से बैतूल वापस लौटा तो रात के ढाई बज चुके थे। ऐसे समय जब रात आधी ज्यादा बीत जाये तब नींद कहाँ आती है। रात को चाय पीकर जब मैने टीवी चालू की तो मेरी पंसीदा फिल्म रोटी - कपडा और मकान आ रही थी। यह फिल्म उस दौर की है जब मेरी शादी भी नहीं हुई थी। इसलिए जवानी के दिनो की मनोज कुमार की इस फिल्म की अभिनेत्री जीनत अमान मेरे दिल के किसी कोने में भी हलचल मचाने लगी थी। उस समय का लोकप्रिय गाना मैं ना भूलूंगा --- मैं ना भूलंगी --- इस गीत के आधी रात को बजने के बाद मुझे अपने सपनो की जीवन संगनी की परिकल्पना किसी चलचित्र की तरह मेरी आँखो के पटल के सामने चलने लगी। मैं उस फिल्म का दुसरा गीत को भी कभी नहीं भूल सकता क्योकि उस गीत ने आज के इस समय में मेरी सोच में जमीन आसमान का परिवर्तन ला दिया। उस समय के रामू में और आज के रामू जमीन आसमान का इसलिए फर्क आ गया क्योकि वह उम्र थी गंगाजल की जगह मदीरा पीने की लेकिन पता नहीं क्योकि उस न तो गंगा मिली न शराब और रह गये यूँ ही प्यासे के प्यासे----- आज जब लोग चाहते कि मैं गंगाजल की जगह शराब पीऊ तो शराब पीने की इच्छा न तब हुई और न अब---- आज तो ऐसा लगता है कि हम मरने से पहले ही अपनी वसीयत कर जाये  कि पंडित जी मेरे मरने के बाद मेरे मँुह में मदिरा जल की जगह ताप्ती जल पिला देना। आज लोग ताप्ती की जगह मदिरा को पीने में अपनी प्रतिष्ठा समझते है। पता नहीं लोगो को क्यूँ शराब - शबाब - कबाब का चस्का लग गया है जो कि मृत्यु की पहली सीढ़ी है।  जीवन एक चक्र है जिसमें लोगो का आना - जाना एक नियती का चक्र है जिसके तहत जो आया है उसे एक न एक दिन जाना है। मनोज कुमार की उस फिल्म की एक नायिका अरूणा ईरानी पर फिल्माया गया वह गाना आज के पंडित जी के ऊपर सटीक बैठता है क्योकि कहना नहीं चाहिये कि अधिकांश पंडित जी अपने मँुह मे गंगा जल कीह जबह मदीरा जल का ही सेवन करने लगे है। मेरे दोस्त तो दूर मेरे दुश्मन भी यही चाहत पाले है कि मैं भी किसी भी तरह से शराबी हो जाऊ और उनकी तरह यहाँ - वहाँ पर कटोरा लेकर दारू मांगता फिरू लेकिन मेरे लिए यह सब इसलिए मुनकीन नहीं क्योकि बचपन से ही मैने शराब से बिडगते परिवारो को और अपने नाते - रिश्तेदारो के हश्र को देखा है। मैं नहीं चाहता कि मेरे बारे में कम से कम लोग यह तो नहीं कहे कि वो देखो साला दारू कुटट दो पैग छाप पत्रकार जा रहा है जिससे अध्धी - पौवा देकर जो चाहे छपवा लो...... आज की पत्रकारिता में लोगो की भीड बढने का वज़ह भी कुछ हद तक फ्री की शराब और कबाव भी है। लोगो जब बिना हाथ पांव चलाये रोज कोई न कोई बकरा दारू पिलाने के लिए या फिर नरेन्द्र जैसा कथित छपास रोग की पीडा से ग्रसित व्यक्ति मिल जाये तब तो उसकी हर रात रंगीन होगी। आज बैतूल जिले के पत्रकारो को रोज ताप्ती जल पीने की या उसमें नहाने की नसीहत देना बेकुफी होगा क्योकि उसे तो सुबह - दोपहर - शाम को बस कोई भी मुज्जी चाहिये। बैतूल शहर में ही नहीं गांवो में भी पागलो की और मुर्खो की कमी नहीं है। एक ढुंढो - दस हजार मिलेगें। आज बैतूल जिले में ही नहीं दिल्ली - भोपाल और गांव - गांव में पेपर बेचने वाले हाकर पत्रकार बन गये स्थिति तो यह आने वाली है कि हम कैमरा पकडने वाला कैमरामेन की जगह न्यूज चैनल का पत्रकार मिलेगा जिसके एक सेकण्ड का पैसा नहीं बल्कि रूपैया होगा वह भी दस - पाच में न होकर हजारो में होगा। आज बैतूल जिले की पत्रकारिता को आवश्क्यता इस बात की है कि जिले भर के पत्रकारो को पहले खुब शराब पिला कर उन्हे ताप्ती में तब तक डुबाये रखना है जब तब की वे शराब और शबाब से तौबा न कर ले। मैं तो यही चाहता हँू पता नहीं कितने लोग मेरी नसीहत पर खरे उतरते है। अंत में माँ ताप्ती सबका भला करे पीने वाले का भी और पिलाने वाले का भी सबसे बाद मे मेरे जैसे नहीं पीने वाले का भला का जिससे की समाज का कथित सुधार हो सके। एक बार फिर उस रोटी - कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।  

Surya Mandir


                                                                    रहस्य
                                                 पहाडिय़ो में छुपा सूर्य मंदिर
                                           सत्यकथा : - रामकिशोर पंवार ''रोढ़ावाला''
भगवान भास्कर जब सुबह अपने रथ पर सवार को जाने के लिए अपने शयन कक्ष से बाहर नहीं निकले तो उनके पूरे महल में चहल - पहल शुरू हो गई. माता संध्या ने भगवान भास्कर से कहा कि '' हे प्रभु आज क्या अपने रथ पर सवार होकर धरती की परिक्रमा करने का इरादा नहीं है क्या....!'' अपने शयन कक्ष में असलाई निंद्रा में उन्होने संध्या से पुछा ''संध्या क्या चांद ने अपनी परिक्रमा पूरी कर ली.....! , तारो की गणना क्या कहती है....!  मुझे वास्तव में अपने स्वर्ण रथ लेकर सृष्टि की परिक्रमा पर निकल जाना चाहिये .......!'' सूर्य नारायण के कई तरह के सवालो के उत्तर में भगवान विश्वकर्मा की पुत्री माता संध्या ने जवाब देने के बजाय अपनी प्रतिछाया सूर्य नाराणय की दुसरी भार्या माता छाया को बुलाया और वह उससे बोली ''अब छाया तुम ही भगवान दिवाकर को समझाओ की उनके जाने का समय निकला जा रहा या नहीं......!'' भगवान सूर्य नारायण की दोनो जीवन संगनी के बीच हो रहे वार्तालाप को सुन रही भगवान भास्कर की छोटी बिटिया ताप्ती अचानक हस पड़ी और कहने लगी ''माँ जो इस सृष्टि के सबसे बड़े देवता है वे तक भगवान सूर्यनारायण की प्रतिक्षा कर रहे है क्योकि बाबा भोलेनाथ को भी तो भोर होते ही अपने शिव भक्तो के अभिषेक का इंतजार रहता है.....!'' ताप्ती की बात पर सूर्य पुत्र शनि ने अपनी छोटी बहन ताप्ती को समझाया कि  ''बहना तू अभी छोटी है.... यदि जगतपिता ब्रहमा द्धारा रचित विधान को अपना ही पिता नहीं मानेगा तो भी पूरी सृष्टि में महाप्रलय आ जायेगा और फिर कहीं न कहीं सारा दोष मेरे ऊपर ही आ जायेगा क्योकि लोग तो कहना नहीं भूलेगें कि शनिदेव की दृष्टि पड़ी है तभी तो सब कुछ हो गया ......! , ऐसे में हम भगवान भास्कर की सभी संतानो को चाहिये कि हम अपनी माताओं के द्धारा किये जा रहे प्रयासो पर किसी भी प्रकार की टीका - टिप्पणी न करे और जैसा होना है उसे होने दे......!'' अपने पुत्र की बातो को सुन कर मंद - मंद मुस्कराये भगवान भास्कर ने शनि से कहा कि ''बेटा मुझे आज महसुस हुआ कि मैने तुझे न्याय का देवता बनवा कर कोई गलती नहीं की , क्योकि सही और गलत का फैसला तो तुझे ही करना है ..... , और उसी के हिसाब से सभी को अपने - अपने कर्मो का फल भोगना है.....!'' अपने शयनकक्ष से स्नान - ध्यान आदि से निवृत होकर जैसे ही भगवान भास्कर अपने बारह अश्व  की सवारी वाले स्वर्ण से बने भास्कर रथ पर सवार होने के लिए अस्तबल में पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहां पर उनका बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ नहीं था. भगवान भास्कर अपने ही महल से पहली बार इस तरह लापता हुये अपने स्वर्ण रथ को लेकर चिंता में पड़ गये. इधर धरती - आकाश - बैकुंठधाम यहाँ तक की स्वर्ग में भगवान भास्कर के आने की प्रतिक्षा कर रहे देवी - देवता , नर - नारी - किन्नर , दैत्य - दानव , पशु - पक्षी , वनस्पति , पेड़ - पौधे - जल - थल सभी को बैचेनी होना शुरू हो गई........! अब लोग इसे महाप्रलप का समय से पहले से आने की भविष्यवाणी समझ कर अभी से  चिंताग्रस्त हो गये. भगवान भास्कर को चिंता में देख कर सूर्यपुत्र शनि ने अपनी नज़र घुमाई तो उसे दिखा कि एक दानव भगवान भास्कर का बारह अश्वो का रथ लिए भागे जा रहा था. उसने यह बात अपने पिता को बताई तो भगवान भास्कर और भी चिंता में पड़ गये. दोनो ही पिता पुत्र उस राक्षस की ओर दौड़ पड़े . पिता - पुत्र को इस तरह एक दुसरे के पीछे दौड़ता देख भगवान भोलेनाथ चिंता में पड़ गये. उन्हे लगा कि एक बार फिर कहीं पिता - पुत्र में कोई विवाद तो नहीं हो गया .....! इसलिए भगवान भास्कर बिना रथ के ही अपने पुत्र शनि के पीछे भागे जा रहे है. दोपहर होने को थी ऐसे में आखिर सूर्य पुत्र शनि ने उस राक्षस को  रोक लिया और उससे भगवान भास्कर का रथ वापस लौटाने को कहा लेकिन राक्षस ने शनिदेव की चेतावनी नहीं मानी. अपने किले से एक राक्षस को बारह अश्वो के रथ को देख कर राजा इल की इच्छा हुई कि वह उस राक्षस से रथ छीन ले.....! बस इसी उधेड़बुन में राजा इल ने भगवान भास्कर एवं शनिदेव को देखे बिना ही अपनी मंत्र शक्ति चला दी. मंत्र शक्ति के प्रभाव पड़ते ही वह बारह अश्व रहित स्वर्ण रथ पत्थरो का हो गया. जब राजा इल उस रथ तक पहुंचे वहां पर देवी - देवताओं की लम्बी - चौड़ी जमात एकत्र हो गई थी. रथ को पत्थर को होता देख राक्षस वहां से भाग खड़ा हुआ. अब भगवान भास्कर चिंता में पड़ गये कि इस पत्थरो के रथ पर वे भलां कैसे पूरी सृष्टि की परिक्रमा लगा पायेगें. शनिदेव ने राजा इल से कहा कि वह जिस मंत्र विद्या से रथ को पत्थरो का किया है उसी मंत्र विद्या से इसे अपने मूल स्वरूप में कर दे लेकिन राजा इल ने हाथ जोड़ लिये और वह कहने लगा कि ''हे अदिति नंदन मुझे किसी भी चल - अचल वस्तु को पत्थर का बनाने का मंत्र मालूम था .....! अब इसे मैं क्या दुनिया की कोई भी मंत्र शक्ति अपने मूल स्वरूप में नहीं ला सकती ......!  ऐसे में हे प्रभु मेरी तपस्या और भगवान भास्कर के प्रति समपर्ण को देख कर आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हँू कि भगवान भास्कर एक बार इस रथ में बैठ जाये ताकि मैं रोज अपने महल से इस पहाड़ी पर मेरे द्धारा बनवाये जाने वाले सूर्य मंदिर में भगवान भास्कर आपकी दिन की भरी दोपहर में पूजा - अर्चना कर सकूं ....'' इस बीच भगवान विश्वकर्मा शिव आदेश से दुसरा बारह अश्वो रहित स्वर्ण रथ का निमार्ण कर आ चुके थे. भगवान विश्वकर्मा के साथ पूरा सूर्य परिवार था. भगवान भास्कर ने राजा के आग्रह को स्वीकार किया और स्वर्ण से पत्थर का बने रथ पर जैसे ही बैठे पूरे आकाश में उनका तेज प्रताप जगमगा उठा. धरती - आकाश - शिवलोक , बैकुंठधाम , स्वर्ग लोक से सभी देवी - देवताओं ने भगवान भास्कर पर फूल बरसाने शुरू कर दिये. इस बीच नारायण भक्त देवऋषि नारद भी अपनी वीणा के साथ उस पहाड़ी पर आ गये. जहां पर पत्थरो का वह रथ था जिस पर भगवान भास्कर कुछ पल के लिए बैठे हुये थ्से. देवऋषि नारद ने राजा इल से कहा कि ''राजन तुम्हारे कर्मो का ही फल है कि आज भगवान भास्कर इस धरती पर किसी स्थान पर नही बल्कि एक ऐसी पहाड़ी पर विराजमान हुये जिसको तुम्हारे किले के चारो दरवाजो से देखा जा सकता है. .....''  देवऋषि की वाणी का सभी ने स्वागत किया. भगवान भास्कर ने अपने दुसरे रथ पर सवार होकर सृष्टि की परिक्रमा शुरू कर दी लेकिन उनके मन में इस बात का संशय बना रहा कि इतनी पहरेदारी के बीच उनके महल तक उनकी तपन की बिना परवाह किये बिना उनका रथ चोरी करने का र्दु:साहस भलां कैसे हो गया. भगवान भास्कर को चिंताग्रस्त देख कर देवऋषि नारद आये और वे कहने लगे ''भगवान भास्कर आपकी चिंता का प्रमुख कारण आपके परिवार से ही जुड़ा है..... , जब - जब आप पिता - पुत्र आमने - सामने होगें तब - तब  इस संसार में ऐसी लीलाए भगवान लीलाश्वर याने उमापति महादेव रचते रहेगे......!'' वह जो रथ को चुराने वाला कोई और नहीं भगवान नीलकंठ से ही सिद्धी प्राप्त एक असुर है जिसका नाम सुन कर आपको हैरानी होगी. भगवान भास्कर की जिज्ञासा को शांत करते हुये नारद जी  बोले ''भगवन यह कोई नहीं बल्कि स्वंय आपके अहंकार से उत्पन्न राक्षस सूर्यासूर है जिसने बरसो आपकी ही पुत्री माँ ताप्ती के तट पर बारहलिंग नामक देव स्थान पर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वरदान मांगा कि ''हे प्रभु मैं कुछ ऐसा कर जाऊ कि यह सृष्टि मुझे याद रखे .......!'' भगवान शिव ने बिना कुछ सोचे अपने भक्त को आर्शिवाद दे डाला. भगवान शिव के आर्शिवाद एवं आपकी पुत्री ताप्ती के निर्मल जल से भीगा होने के कारण उसे आपकी तपन का असर नहीं हुआ और वह आपका स्वर्ण रथ चुरा कर ले गया. अब प्रभु आपको याद होगा कि आपके भक्त राजा इल ने अपने राज्य में पड़े सुखे और आकाल से निपटने के लिए किले के सामने बनवाये उस तालाब में अपने पहले पुत्र और वधु को हवन की बेदी पर बैठाला था. उस सूर्य उपासना से ही तालाब में चारो ओर से जलधारा बह निकली और राजा के पुत्र और पुत्रवधु की जलबलि चढ़ गई. आपने ही राजा से कहा था कि ''हे राजन मैं तुम्हारे त्याग और तपस्या तथा मेरे प्रति समपर्ण से प्रसन्न हूं , चाहो तो इच्छानुसार वर मांग सकते हो......!'' अपने इकलौते पुत्र और पुत्रवधु की मौत से शोकाकुल राजा ने उस समय आपसे कुछ नहीं मांगा लेकिन उसने अपनी सूर्य उपासना जारी रखी. उसे नहीं पता था कि जो राक्षस आपका रथ लेकर भाग रहा है वह सूर्यासूर है तथा उसके पीछे भगवान शिव की शिवलीला है जो इस बात का संकेत देती है कि भक्त और भगवान एक समान . राजा तो स्वंय चाहता था कि वह उस राक्षस से आपका रथ छीन ले लेकिन किले से उस पहाड़ी तक जाने में उसे काफी समय लग जाता इसलिए उसने अपनी मंत्र शक्ति का उपयोग करके पूरे रथ को ही पत्थर का बना डाला. रथ को पत्थरो का बनता सूर्यासूर भाग खड़ा हुआ. अपने रथ का पीछा करते भगवन भास्कर आप और आपके पुत्र शनिदेव जब इस पहाड़ी तक पहुंचे राजा इल भी वहां पहुंच चुका था. राजा की इच्छानुसार प्रभु आपको दोपहर को एक पल के लिए उस पत्थरो के रथ पर बैठना पड़ा क्योकि इस संसार में पृथ्वी पर आज तक किसी भी स्थान पर भगवान सूर्य आपका स्वर्ण रथ वाला मंदिर नहीं है. जिस पर आप स्वंय हर दिन दोपहर को एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है. इस मंदिर को लोग सदियो तक पूजते रहेगें लेकिन एक दिन यह मंदिर अपने आप ही अपने मूल स्वरूप को खो देगा.
                दादी और नानी से कई बार इस कहानी को सुन चुका था कि मेरे ही जिले की किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है जिसने भगवान भास्कर एक पल के लिए आकर विराजमान होने के बाद चले जाते है . बचपन की सुनी कहानी को मेरे दिमागी चित्रपटल ने आज तक जिंदा रखा था. मैने सबसे पहले खेडला किले के आसपास की पहाडिय़ो की खाक छानने के बाद मैं आगे की ओर बढ़ता गया. मुझे महिने नहीं बल्कि ढाई - तीन साल लग गये. जवानी के दिनो में मैने सत्यकथा में भी सूर्यमंदिर की कहानी पढ़ी थी लेकिन लेखक ने ऐसा भ्रम का जाल बिछाया कोई उस ठौर तक जा ही नहीं सका. हालाकि उस लेखक की कहानी का केन्द्र भी वही सूर्य मंदिर था जिसे मैं खोज रहा था. आज जब मैं उस पहाड़ी के करीब पहुंचा तो मैने कई आसपास के कई राह चलते ग्रामीणो से पुछा कि ''इस गांव की किस पहाड़ी पर सूर्य मंदिर है लेकिन पूरे गांव में कोई भी मेरे सवाल का जवाब नहीं दे सका......!'' अचानक कुछ देर रूकने के बाद मैं उस पहाड़ी की ओर अकेला ही चल पड़ा . पूरा जंगल सुनसान कंटीली झाडिय़ो से भरा बियावान था . मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था. कुछ दूर चढऩे के बाद जब थकान के मारे जब  मेरा दम भरने लगा तो मैं एक स्थान पर बैठ गया. आबादी से कोसो दूर उस पहाड़ी पर मुझे एक बाबा दिखाई दिया . जब मैने उससे सूर्य मंदिर का पता पुछा तो वह बोला ''पत्रकार हो या कहानीकार .......!'' मैं अपने बारे में बाबा से सच्चाई जानने के बाद भौचक्का रह गया. मुझे लगा कि सूर्य मंदिर के चक्कर में मैने बैठे ठाले मुसीबत मोल ले ली है. बाबा बोला ''बेटा मंदिर को ही देखेगा या उसके पीछे की कहानी भी जानेगा .....!'' और फिर वह बाबा ऊपर बताई गई कहानी को सुनाते हुये मुझे ठीक भरी दोपहर को उस स्थान पर ले गया जहां पर सूर्य भगवान का वह पत्थरो में बदला रथ और मंदिर था. पहाड़ी पर बने सूर्य मंदिर की कोई छत नहीं थी . बस चारो ओर परकोटे के खम्बे गड़े थे. सूर्य भगवान की प्रतिमा एक स्थान पर लेटी हुई थी. पूरा रथ जो पत्थरो का बना था उसके सारे पत्थर आसपास के गांव के लोग निकाल कर ले जा चुके थे. मंदिर में देखने को कुछ भी नहीं था लेकिन जैसे ही सूर्य सर के ऊपर आता है अचानक उस स्थान पर सूर्य का तेज इतना बढ़ जाता है कि ठंड हो बरसात इसंान पानी से नहा लेता है. कुछ पल बाद स्थिति ज्यों की त्यों हो जाती है. बाबा ने ठीक उसी समय लेटे हुये भगवान भास्कर की प्रतिमा की पूजा की और वे अचानक मेरी आंखो से ओझल हो गये. सुनसान पहाड़ी पर मेरे अलावा कोई नहीं था. डर के मारे मैं थर - थर कांप रहा था. दिन में किसी भूतहा महल या खोली में जाने के बाद होने वाली स्थिति का मुझे आभास होने लगा. मैने अपनी अराध्य माँ काली को और माँ ताप्ती को संग - संग याद किया और उल्टे पांव पहाड़ी से नीचे उतरने लगा. मुझे पहाड़ी चढऩे से ज्यादा समय उतरने में लग रहा था. थोड़ा सा भी अनबेलेंस हो जाता तो सीधे खाई में जा गिरता लेकिन मैने लताओं और पेड़ो की टहनियों को पकड़ कर नीचे उतरने का प्रयास किया. शाम होने को आई थी. जब थका - हारा मैं उस गांव में पहुंचा तो पूरा गांव मुझे नफरत से देख रहा था. गांव का एक बुर्जग बोला ''बेटा क्यों हमारी - तुम्हारी जान के दुश्मन बने हो ....... उस पहाड़ी पर जाने के बाद ही गांव में कोई न कोई आफत आती है......!'' मैने उस बुर्जुग से पुछा ''बाबा कैसी मुसीबत और कैसे जान पर आफत ......!'' वह बोला तुम जिस बाबा के साथ उस पहाड़ी तक पहुंचे हो वह कोई और नहीं बल्कि उस सामने वाले किले का राजा इल ही है जो बरसो से अपने अराध्य भगवान सूर्य नारायण की भरी दोपहर में पूजा करने जाता है . जबसे उस मंदिर के पत्थर चोरी होने लगे तबसे पूरे गांव पर मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा है. समय के काल चक्र ने उन लोगो की जाने ले ली है जिसने उस मंदिर के पत्थरो से बने रथ के पत्थरो को निकाल कर विदेशियो को बेचा डाला था . पिछली बीस सालो में आसपास के कई गांवो के कई नौ जवान लोभ और लालच की बेदी पर बलि चढ़ गये है . पहली बार पत्थर लाकर देने के बाद जब भी वह दुसरी बार उस पहाड़ी पर गया है वहां से जिंदा नहीं लौटा है. एक - एक करके इस गांव के हर घर का एक छोरा उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में काल के गाल में समा जाता है. वह राजा आज भी रोज दोपहर को साधु - बाबा - संत  के भेष में मंदिर में अपने भगवान की पूजा करने जाता है. जिसकी नीयत साफ हो उसे वह पहाड़ी तक ले जाता है लेकिन जिसके मन में लोभ लालच आया समझो उसकी जान चली जाती है. आज पिछली बीस पीढिय़ों से हम इस मंदिर के श्राप का दण्ड भोग रहे है. जब भी कोई गांव में आने के बाद मंदिर का पता पुछता है तो हमें ऐसा लगता है कि कहीं यह भी उस मंदिर के पत्थरो के चक्कर में अपनी जान न गवां बैठे.  जब मैने उसे बताया कि ''मैं लेखक हूं कहानी लिखता हू , इस सूर्य मंदिर को लेकर भी कहानी लिखना चाहता हँू......!'' मेरी बात सुन कर वह बुढा व्यक्ति बोला ''बेटा मैं पहले ही कह रहा था कि क्यों हमारी जान के दुश्मन बने बैठे हो ......! , तुम कहानी लिखोगें उसे पढ़ कर लोग आयेगें और फिर वही होगा जो अभी तक होता आ रहा था........!'' मैने उस व्यक्ति के साथ पूरे गांव को यकीन दिलाया कि मैं अपनी कहानी में कहीं पर भी आपके गांव का नाम और पता नहीं बताऊंगा......... मेरी बात का उन लोगो पर असर हुआ. बातचीत में पता भी नहीं चला कि कब रात हो गई. जब मै अपनी मोटर साइकिल लेकर जाने लगा तो गांव वालो मे मुझे रोक लिया और वे कहने लगे कि रात का सफर दिन के सफर से ज्यादा खतरनाक है. गांव वालो के आग्रह पर मैं रात तो वहीं रूक गया. रात में गांव के लोगो ने मुझे वे मंदिर के पत्थर दिखाये जिसके चक्कर में उनके बच्चे बेमौत मारे गये थे. उन पत्थरो को देखने के बाद कहीं से कहीं तक ऐसा नहीं लगता था कि ए पत्थर है या स्वर्ण ....... गांव वालो की बताये किस्से कहानी सुन कर मुझे कब आंख लग गई और मैं सो गया. सुबह जब नींद खुली तो मैने स्वंय को अपने ही घर के बिस्तर पर पाया. मेरी हालत देख कर मेरा पूरा परिवार मेरे चारो ओर बैठा था. मेरे दोनो बेटो और पत्नि का रो रोकर बुरा हाल था. बाबू जी और मां भी अपनी आंखो के आंसुओ को रोक नहीं पा रहे थे. मेरे लाख पुछने पर जब किसी ने कुछ नहीं बताया तो मैं बिस्तर से उठा और अपनी दैनिक क्रियाओं से निवृत होने के बाद मैने अपने बड़े बेटे से कहा कि ''बेटा गाड़ी बाहर निकाल आज शनिवार है ताप्ती नहाने चलना है......!'' घर के लोगो के मना करने के बाद भी मैं ताप्ती नहाने के लिए निकल गया. माँ सूर्य पुत्री ताप्ती में स्नान - ध्यान और पूजा करने के बाद जब मैं वापस लौटने लगा तब  मेरे बेटे ने बीती रात वाली कहानी मुझे ्रबता ही दी. उसके अनुसार  ''पापा आज आप सपने में किसी पहाड़ी पर सूर्य मंदिर को देखने के लिए जा रहे थे और इधर बिस्तर पर बड़बड़ाते जा रहे थे .......!'' आपकी हालत देख कर ही सभी लोग नींद से जाग कर आपके जागने का इंतजार करने लगे. जब घर पहुंचा तो घर पर नाते - रिश्तेदारो की लम्बी चौड़ी भीड़ लगी थी. कुछ लोग एक बाबा को पकड़ लाये थे . बाबा को देख कर मैं दंग रह गया क्योकि यह तो वही बाबा था जो मुझे मंदिर तक ले गया था. मेरी हालत देख कर बाबा ने मुस्काराते हुये मेरे हाथ में एक पत्थर का टुकड़ा दे दिया और उसे तब तक दबाये रखने को कहा जब तक कि वह चला न जाये. इशारे ही इशारे में बाबा ने मुझे सख्त चेतावनी भी दे डाली कि  मैं उसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताऊ ......!'' बाबा के जाते ही जैसे में अपनी हथेली खोली तो मैने देखा कि वह उसी सूर्य मंदिर के रथ के पहिये का एक छोटा सा हिस्सा था जो इस कथा के काल्पनिक न होने की कहानी बयां करता है. आज इस घटना को कई दिन बीत गये लेकिन सूर्य मंदिर को लेकर लोग आज भी जिज्ञासु है कि आखिर सूर्य मंदिर यदि है भी तो कहाँ.........! मैं गांव वालो की भलाई के लिए मंदिर की लोकेशन तो नहीं बता सकता लेकिन यह बात दावे के साथ कह सकता हँू कि इस क्षेत्र में किसी न किसी पहाड़ी पर वह  स्थान जरूर है जहां भगवान भास्कर आज भी एक पल के लिए अपने रथ पर बैठने के लिए आते है. आज भले ही रथ न हो पर भगवान और भक्त की बेमिसाल बने इस सूर्य मंदिर का रहस्य कई और भी रहस्यो पर से पर्दा हटा सकता है.
इति,
रामकिशोर पंवार
पत्रकार - लेखक - कहानीकार
खंजनपुर बैतूल मध्यप्रदेश   मो. 9993162080
नोट :- कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है. 

Betul. Betul district, about the history of the district more

Betul. Betul district, about the history of the district more than half the population do not know what the district regard Age - period - the time when - when is. Assumptions about the place in the district and some knowledgeable historians and experts of the Department of Purattw to contemplate now reflect on the fact that drawing the Betul district of Madhya Pradesh tribal concentration and Purattw Preachin's history and mythology. Betul district, the relation Suryvansh how much Preachin history is connected. Betul district Tapti river flowing in the Adi Ganga - Bhadra - TAPI - Tapti - Tapti Dergno Nmo including what is called the birthplace Multapie - Mulatai in Betul district is located. Preachin to tell the history of the district we have some evidence are presented. Regard to the tribes living in the district a rough age and period duplicate is. During the Golden Age of Vidarbha after his marriage to Princess Damayanti discarded after wandering in the forests of the district Masod King taps located near the village pond but the fish tried roasting the fish in the pond to be jumping kernel. Popular stories tap into the region - in terms of Damayanti said that the high Pattten Kheda village Mangleraja beads - Damoti Queen Brua Baman story tells us, she hears him telling a story of sixteen, listen Mahalaxmi queen's Vidarbha area in the Mahabharata, which currently Akichaldra Chiackadra Keechaka king of the region was called the King's brother in law, which was vast. Keechaka Akda name Kaichkadharo Betul and neighboring state that is currently in Amravati district of Maharashtra engaged Chiakaldra Partwada area is called. King Keechaka Verat Divine Goddess of the total space of Betul district in the morning Preachin Parpattten Paton was in the village was known as the village. Mahabharata during the pre Atञatvasa Pancho Peadana King Keechaka Asaalberdi located in the state are in caves that still exists. Pandav son Sanaganie life because of the bad track Keechaka killed by Bhima Pandava son. Lord Sri Rama in Betul district Tretayaug the sun mother daughter Tapti river Tapti Sivadham Barahling setting on the banks of the twelve Sivalingo Patthro who was with the help of the Lord Vishwakarma is still present. There is also the place where Mother Sita Sita Ssnnanagar on the banks of Tapti bath used. Veno is the custard apple found in this area that is mentioned in Ramayana. Chaupeai mother Sita in the Ramayana states that the Lord very dear fruit Mora Puchti the law in the name of God the custard apple was named Sita. Kuruvansh founder of Betul district, the birthplace of King Kuru Tapti many of the parents as evidence Takadi Narada, Narada kunda, Sun reservoir, Dhermkund, sin reservoir, Ashnekund, Tapti birthplace of seven reservoir is present in Betul district. Betul district is still the most lingam Tapti River, which is evidence that Ravana did penance son Mehanath difficult side of the Tapti. The region of the state's share of Ravana Mehanath Balashali son is so even in the native villages today Mehanath - Ravana - Kuanhkaaran worship. Deoalhat Tapti River is a place called River located in the center tunnel where the Lord made the heavens were departing. Purna Chandra daughter in the district which is also the birthplace Pushpakarni Heisadehi have it. Betul district Preachin history proves the fact that the sun and the two Dev Chandravansh girls place of origin in the district and the district they can get to get to Bhusawal. Betul district, many of whom also remains Preachin need today to understand and test.Betul district Awakening Forum Tapti Tapti mother mother daughter glory of the sun people - people strive to reach. Jizasu person ever to get any information can contact. Net in the name of glory and the Tapti Tapti Kathayean has given many in the name of law. 

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Monday, November 8, 2010

maa tapati -2

The sources of this story Maa Tapati daughter of Sun

The sources of this story are the Ramayan , Purana & the Mahabharata. The period is considered as Satyuga , Tretayuga , Dawapar yuga  & Kalyuga according to old Indian literature & mythology. Tapati is Name was Aadi Ganga. In India, as elsewhere, the folk of the spirit world might woo or be wooed by impressionable mortals. A Gandharva related to Arjuna, the Pandava prince, by whom he was defeated in single combat, the "charming story", as he called it, of King Samvarana (the Lunar Dynasty) and the fairy-like Tapati, a daughter of the sun god, Surya.Tapati was of all nymphs the most beautiful; she was "perfectly symmetrical" and "exquisitely attired"; she had "faultless features, and black, large eyes"; and, in contrast to an Apsara, she "was chaste and exceedingly well conducted". For a time the sun god considered that no husband could be found who was worthy of his daughter; and therefore "knew no peace of mind, always thinking of the person he should select". One day,however, King Samvarana worshipped the sun, and made offerings of flowers and sweet perfumes, and Surya resolved to bestow his daughter upon this ideal man. It came to pass that Samvarana went a-hunting deer on the mountains. He rode swiftly in pursuit of a nimble-footed stag, leaving his companions behind, until his steed expired with exhaustion. Then he wandered about alone. In a secluded wood he beheld a maiden of exquisite beauty; he gazed at her steadfastly for a time, thinking she was a goddess or "the embodiment of the rays emanating from the sun". Her body was as radiant as fire and as spotless as the crescent moon; she stood motionless like to a golden statue. The flowers and the creepers round about partook of her beauty, and "seemed to be converted into gold".

She was Tapati, daughter of the sun. The king's eyes were captivated, his heart was wounded by the arrows of the love god Kama; he lost his peace of mind. At length he spoke and said: "Who art thou, O fair one? O maiden of sweet smiles, why dost thou linger in these lonely woods? I have never seen or heard of one so beautiful as thee. The love god tortures me." That lotus-eyed maiden made no answer; she vanished from sight like to lightning in the clouds. The king hastened through the forest, lamenting for her: he searched in vain; he stood motionless in grief; he fell down on the earth and swooned. Then, smiling sweetly, the maiden appeared again. In honeyed words she spoke, saying: "Arise, thou tiger among kings. It is not meet that thou shouldst lose thy reason in this manner." Samvarana opened his eyes and beheld Tapati. Weak with emotion he spoke and said: "I am burning with love for thee, thou black-eyed beauty, O accept me. My life is ebbing away. I have been bitten by Kama, who is even like a venomous snake. Have mercy on me.  O thou of handsome and faultless features, O thou of face like unto the lotus or the moon, O thou of voice sweet as that of singing Kinnaras, my life now depends on thee. Without thee, O timid one, I am unable to live. It behoveth thee not, O black-eyed maid, to cast me off; it behoveth thee to relieve me from this affliction by giving me thy love. At the first sight thou hast distracted my heart. My mind wandereth. Be merciful; I am thy obedient slave, thy adorer. O accept me. . . . O thou of lotus eyes, the flame of desire burneth within me. O extinguish that flame by throwing on it the water of thy love. . . . " Tapati replied: "I am not mistress of mine own self. I am a maiden ruled by my father. If thou dost love me, demand me of him. My heart hath been robbed by thee." Then, revealing her identity, Tapati ascended to heaven, and once again Samvarana fell upon the earth and swooned. The ministers and followers of the king carne searching for him, and found him "lying forsaken on the ground like a rainbow dropped from the firmament". They sprinkled his face with cool and lotus-scented water. When he revived, the monarch sent away all his followers except one minister. For twelve days he worshipped the sun constantly on the mountain top. Then a great Rishi, whom he had sent for, came to him, and the Rishi ascended to the sun. Ere long he returned with Tapati, the sun god having declared that Samvarana would be a worthy husband for his daughter. For twelve years the king lived with his fairy bride in the mountain forests, and a regent ruled over the kingdom. But although the monarch enjoyed great bliss, living the life of a Celestial, the people of the kingdom suffered greatly. For twelve years no rain fell, "not even a drop of dew came from the skies, and no corn was grown". The people were afflicted with famine; men grew reckless, and deserted their wives and children; the capital became like to a city of the dead. Then a great Rishi brought Samvarana back to his capital with his Celestial bride. And after that things became as they were before. Rain fell in abundance and corn was grown. "Revived by that foremost of monarchs of virtuous soul, the capital and the country became glad with exceeding joy." A son was born to the king, and his name was Kuru. [From "Indian Myth and Legend" by Donald A. Mackenzie (1913), CHAPTER IV (Demons and Giants and Fairies)] Legand about Tapti river.The Tapti is the one of few Indian rivers that flows westward and falls into the Arabian Sea, in the Gulf of Khambat, to be precise. Mostly river flows eastward and falls into the bay of Bengal. According to the Puranas, ancient Hindu texts, the Tapti is the daughter of the Sun god, Surya, who created her to save himself from his own intense heat. Tapti is also known as Tapi (taken from the Sanskrit word taap, which means heat). In the Hindu epic, the Mahabharata, it is mentioned that Tapti had married Sanvaran & the mother of Kuru, from whom the Kuru Dynasty started. From Kuru was descended the Pandavas and the Kauravas, the principal protagonists of the Mahabharata, one of the two major epics of Indian Mythology, the other being the Ramayana, the epic about Rama, an incarnation of Vishnu sent to earth to destroy the terrible asura (demon), Ravana. Note: In Hindu mythology, the Solar Dynasty (Surya-vanshi) & the Lunar Dynasty (Chandra-vanshi or Soma-vanshi) are two principal houses of the Kshatriya Varna, or ruling caste. The Solar Dynasty claims descent from the Sun (Surya), while the other principal house, Lunar Dynasty claims descent from the Moon (Soma). About Tapati river read at : www.famous-india.com, Wikipedia There were some posts related with both dynasty in this blog & some more will follow. That's why recommend to read about: "Suryavanshi" or Suryavamsa means a person belonging to this dynasty. This clan was the oldest and biggest kshatriya clan of India which was also known by many synonyms as Adityavamsha (?????????), Mitrawamsha (????????), Arkawamsha (???????), Raviwamsha (??????), etc. The early Suryavanshis considered Sun-god ('Surya', 'Aditya' or 'Arka') as their kul-devta (clan God) and mainly practised sun-worship.The clan founder, Vivasvan or Vaivaswat Manu, also known as Arka-tanaya (???? ???) or son of Arka (Surya), is supposed to have lived coeval with the origin of the world. The name Vivaswan literally means master of the rays. That is, The Sun or Sun God. The first historically important king of this dynasty was Vivaswan's grandson Ikshvaku, so the dynasty is also known as the Ikshvaku dynasty [1].The solar clan is especially associated with Rama, the King of Ayodhya whose story is told in the Ramayana. Rama was the rightful heir according to the rule of primogeniture, but because his father had made a promise to his second queen, Kaikeyi, who asked for Rama to be exiled to the forest for 14 years and her own son crowned in Rama's place, Rama was disqualified from ruling, however, Kaikeyi's son Bharata never accepted the throne but ruled as regent till Rama came back from exile.The last important king of Ayodhya was Brihdbal, who was killed by Abhimanyu in the Kurukshetra war. The last ruling king of the dynasty at Ayodhya was Sumitra in the 4th century BC, who, after being forced out of Ayodhya by emperor Mahapadma Nanda of Magadha's Nanda Dynasty, continued the royal line at Rohtas.Most of the Gurjars (or Gujjars) believe to have descended from Suryavanshi Kshatriyas (Sun Dynasty).[2] Historically, the Gurjars were Sun-worshipers and are described as devoted to the feet of the Sun-god (God Surya).Their copper-plate grants bear an emblem of the Sun and on their seals too, this symbol is depicted.[3] Also the Gurjar title of honor is Mihir which means Sun.[4][5]As laid down by Manu, the kings of the solar dynasty followed the rule of primogeniture. Only the eldest male offspring of the king could succeed to the throne, unless disqualified by the priests for being physically disabled or some other reason. The younger sons also produced many prominent historical Kshatriyas and Vaishyas, but these are not included in the following list of monarchs. The list, however, does include some rightful heirs who were disqualified by the priests.[edit] Source of the lineageThe Puranas, particularly Vishnu Purana,The Ramayana by Valmiki and the Mahabharata by Vyasa gives accounts of this dynasty.The Raghuvamsha of Kalidasa also mentions the namesof some of the kings of this dynasty.[6][7][8],other important sources are the Mahabharat and the Ramayana[edit] The List of MonarchsThe following is the list, in chronological order, of the monarchs of the solar dynasty according to the Puranas.[citation needed]King Sagar's great-great-grandson, Bhagiratha in penance.
1.Brahma created 10 Prajapatis [9], one of whom was Marichi.
2.Kashyapa is the son of Marichi and Kala. Kashyapa is regarded as the father of humanity. His sons from Aditi, the sky goddess, and the daughter of Daksha Prajapati are called Adityas (Sons of Aditi), they were, A?sa, Aryaman, Bhaga, Dhuti, Mitra, Pu?an, Sakra, Savit?, Tva???, Varu?a, Vi??u, and Vivasvat or Vivasvan [10].
3.Vivasvan or Vaivasvata (one of the sons of Lord Sun) - the Sun God, progenitor of the clan. His parents were the sage Kashyapa, father of all beings, and Aditi, Aditi's 12 sons, the Adityas, are the sun deities, and both Vivaswan and Aditya mean sun. Therefore another name for Vivaswan is Surya or the Sun, hence the name, Suryavansha. Vivaswan's sons include Shrraaddev and Shanishchar.
4.Manu or Vaivasvata Manu - the King of all mankind and the first human being. (According to Hindu belief there are 14 Manvantaras; in each, Manu rules. Vaivasvata Manu was the seventh Manu [11]. Manu is referred to as a Rajan (King) in the Shatapatha Brahmana scripture. He had nine sons, Vena, Dhrishnu, Narishyan, Nabhaga, Ikshvaku, Karusha, Saryati, Prishadhru, Nabhagarishta and one daughter, Ila, who was married to Budha of the Lunar Dynasty). He left the kingdom to the eldest male of the next generation, Ikshvaku, who was actually the son of Manu's brother Shraaddev.
5.Ikshvaku - the first prominent monarch of this dynasty, giving the dynasty its another name the Ikshvaku dynasty.
6.Vikukshi - He is said to have eaten the meat of a rabbit at the time of Shraddha and was known as Shasad. (Some records claim him to be grandson of Ikshvaku.) His son was Kakuthsa or Puranjay.
7.Kakutstha or Puranjaya - He was a brave king and fought in the Devasur Sangram. His original name was Puranjaya. But after he annihilated Asuras (demons) (or "Ahuras" i.e. Persians)while sitting on the hump (Kukud) of a bull, he was known as Kakuthstha, which means seated on the hump. His dynasty was also known as Kakuthstha after him.
8.Anena or Anaranya
9.Prithu
10.Vishvagashva
11.Ardra or Chandra
12.Yuvanashva I
13.Shravast - He founded the town of Shravasti near Kosala.
14.Vrihadashva
15.Kuvalashva - He killed a Rakshasa named Dhundh. It is said that Dhundhar region and the Dhund river are named after Dhund. Eighteen of Kuvalashva's sons died in the battle with Dhund. Thereafter, Kuvalashva was called "Dhundhumara".
16.Dridhashva
17.Pramod
18.Haryashva I
19.Nikumbh
20.Santashva
21.Krishasva
22.Prasenjit I - His daughter Renuka was married to sage Jamdgni. She was mother of Parashurama.
23.Yuvanashva II - He was married to Gori, daughter of the Chandravanshi king Matinaar.
24.Mandhata - He became a famous and Chakravarti (ideal universal ruler) king. He defeated most of the other kings of his time. He married Bindumati, a daughter of the Chandravanshi king.
25.Ambarisha - Great devotee of Vishnu.
26.Purukutsa & Harita - Purukutsa performed the Ashwamedha Yajna (horse sacrifice). He married Nagkanya "Narmada". He helped Nagas in their war against the Gandharvas. Harithasa gotra lineage starts from here.
27.Traddasyu
28.Sambhoot
29.Anaranya II
30.Trashdashva
31.Haryashva II
32.Vasuman
33.Tridhanva
34.Tryyaruna
35.Satyavrata or Trishanku - His original name was Satyavrata, but he committed three (tri) sins, and hence got the name Trishanku. First, while he was a prince, he misbehaved and was temporarily exiled from the kingdom. Next, he killed the milch cow of his preceptor Vasishta. His third sin was that he used the unsanctified meat of his kill as food. Trishanku also had a desire to ascend to heaven in his mortal body. After Vashistha refused him this boon, since it is against nature to ascend into heaven as a mortal, the sage Vishwamitra, Vashistha's rival, created another heaven for him, called "Trishanku's Heaven", and located in mid-air. His sons were Dhundumara, and Harishchandra, who was borh of the princess of "Kaikaya" named "Satyaraksha".
36.Harishchandra - He is known for his honesty, truth and devotion to duty or Dharma.
37.Rohitashva - He was the son of Harishchandra. He founded town of Rohtas Garh in Rohtas district, Bihar and Rohtak, originally Rohitakaul, meaning from the Kul (family) of Rohit
38.Harit
39.Chanchu
40.Vijay
41.Ruruk
42.Vrika
43.Bahu or Asit - He was attacked and defeated by another clan of Kshatriyas. After this, he left Ayodhya and went to the Himalaya mountains to live as an ascetic with his queens. At that time Yadav queen was pregnant with Sagara.
44.Sagara - He recaptured Ayodhya from the "Haihaya" and "Taljanghi" Kshtriyas. He then attempted to perform the horse sacrifice, Ashwamedha Yajna. However, the sacrificial horse was stolen by the god Indra on the south eastern shores of the ocean, which was at that time an empty bed with no water in it. At least sixty of Sagara's sons died attempting to recover the horse, also causing great destruction by their reckless search. Puranic legends say the number of his sons was 60 thousand.
45.Asmanja - Sagara's surviving son was not made king due to his bad conduct.
46.Anshuman - He was the grandson of Sagara, and his successor as king. He did penance in an attempt to bring the holy river Ganges to earth, that she might wash away the sins of his ancestors.
47.Dileepa I - He also tried to bring Ganges to earth, but also failed.
48.Bhagiratha - Sagara's great-grandson, after strenuous penances, at last succeeded in bringing Ganges down from heaven. When she flowed over the remains of his ancestors, their souls were redeemed, and the ocean was refilled. Ganges also bears the name "Bhagirathi", in honour of his deed.
49.Shrut
50.Nabhag
51.Ambarish - According to Buddhist legends, he went to Tapovana to be a renunciant but after a public outcry returned and ruled for some time.
52.Sindhu Dweep
53.Pratayu
54.Shrutuparna
55.Sarvakama
56.Sudaas
57.Saudas or Mitrasah - He performed the Ashwamedha Yajna, but as the rituals were concluding a Rakshasa tricked him into serving human meat to Brahmin's including Rishi Vashishta. He was then cursed by the Brahmins. He wanted to curse them back, but his wife prevented him. He spent twelve years in exile in the forest.
58.Sarvakama II
59.Ananaranya III
60.Nighna
61.Raghu I
62.Duliduh
63.Khatwang Dileepa
64.Raghu II or Dirghbahu - He was a famous king, who conquered most of India. The great epic Raghuvamsa describes his victories. After him the Sun dynasty was also known as the dynasty of Raghu as Raghav (Raghuvanshi).
65.Aja
66.Dasaratha
67.Rama - He is considered the seventh Avatar of the god Vishnu. He is worshiped by every Hindu. Many Hindus include his name in either their first or last name. Rama's story before he became king of Ayodhya is recounted in the Ramayana. After he ascended the throne, he performed the Ashwamedha Yajna. Bharata, his younger brother, won the country of Gandhara and settled there.
68.Lava and Kusha - They were the twin sons of Rama and his wife Sita. Lava ruled south Kosala while Kusha ruled north Kosala, including Ayodhya. Kusha married "Nagkanya" "Kumuddhati", sister of Kumuda. After Kusha the following kings of the solar dynasty ruled Ayodhya:
69.Atithi
70.Nishadh
71.Nal
72.Nabha
73.Pundarika
74.Kshemandhava
75.Dewaneek
76.Ahinagu, Roop and Rooru
77.Paripatra
78.--(unknown name)
79.Bala
80.Ukta
81.Vajranabh
82.Shankh
83.Vishvashaha
84.Hiranyanabha
85.Pusya
86.Dhruvsandhi
87.Sudarshan
88.Agnivarna
89.Shighraga
90.Maru
91.Prasut
92.Susandhi
93.Amarsha
94.Vishrutwan
95.Vishravbahu
96.Prasenjit I
97.Takshaka - Laid the foundation of Nagavansh
98.Brihadbal - He fought in Battle of Kurukshetra (see Mahabharata) on the Kaurava side and was killed in battle.
99.Brahatkshtra
100.Arukshay
101.Vatsavyuha
102.Prativyom
103.Diwakar
104.Sahdeva
105.Vrihadashwa
106.Bhanuratha
107.Pratitashwa
108.Supratika
109.Marudeva
110.Sunakshtra
111.Antariksha
112.Sushena
113.Anibhajit
114.Vrihadbhanu
115.Rawats
116.Dharmi
117.Kritanjaya
118.Rananjaya
119.Sanjay
120.Prasenjit II - He was a contemporary of Gautama Buddha and King Bimbisara of Magadha. His sister, Koushala Devi, was married to Bimbisara. The city of Kashi (Varanasi) was given as a dowry to her. After Bimbisara was murdered by his own son Ajatshatru, Prasenjit undertook a long series of wars with Ajatshatru. He also respected Buddha, who was also a Kshatriya from solar dynasty. In Buddhist literature he is addressed as "Pasenadi".
121.Kshudrak
122.Kulak
123.Surath
124.Sumitra - He was the last king of Ayodhya from solar dynasty. In the fourth century BC, emperor Mahapadma Nanda of the Nanda Dynasty forced Sumitra to leave Ayodhya. He went to Rohtas with his sons. His son Kurma established his rule over Rohtas.Tapti is one of the major rivers in central India with a length of seven hundred and twenty four kilometers. It is one of the three rivers like Narmada River and Mahi River, which flow from the east to west direction. The river originates in the eastern Satpura Range of southern part of Madhya Pradesh. It then flows westwards running in Madhya Pradesh`s Nimar region, Maharashtra`s Kandesh and east Vidarbha regions in the northwest corner of the Deccan Plateau and South Gujarat. It empties into the Gulf of Cambay of the Arabian Sea, in the State of Gujarat. The important tributaries of the Tapti River are Purna River, Girna River, Panzara River, Waghur River, Bori River and Aner River. The river basin covers an area of 65,145 square kilometers. The basin comes under the state of Maharashtra covering an area of 51, 504 square kilometers, Madhya Pradesh over an area of 9,804 square kilometers and Gujarat spread over an area of 3,837 square kilometers. The districts drained by river in Maharastra are Amravati, Akola, Buldhana, Washim, Jalgaon, Dhule, Nandurbar, and Nashik districts, Betul and Burhanpur districts of Madhya Pradesh and Surat district of Gujarat. The origin of Tapti River is known to be in the Betul district. The particular place of the river`s birth is the town of Multai. The Tapti River originates in the Betul district from a place called Multai. The Sanskrit name of Multai is Multapi and the term means the origin of Tapi Mata or the Tapti River. The Tapi River in Thailand was named after India`s Tapti River on August 1915. According to Hindu values, the Tapi River is considered to be the daughter of Lord Surya. There is a Purana dedicated to the virtues of Tapi, which praises the river as holier than all other rivers including the Ganges. The Tapi purana has mentioned that bathing in the Ganges, beholding Narmada and remembering Tapi, any person can be delivered from all sins.
The history of Tapti River is deeply associated with the history of the places across which it flows. Tapti is a river of western India and the history of this river starts with its origin in the Betul district. It rises in Betul district of Madhya Pradesh and flows between two spurs of the Satpura Hills, across the plateau of Khandesh, and thence through the plain of Surat to the sea. It has a total length of around 724 km. and drains an area of 30,000 sq. m. For the last 32 m. of its course, it is a tidal flow, but is only navigable by vessels of small tonnage; and the port of Swally at its mouth. The history of this river is closely associated with the Anglo Portuguese history. The upper reaches of the river are now deserted, owing to silting at the outflow of the river. The waters of the Tapti are usually not used for irrigation. The geography of Tapti Riveris the land and soil formation all along its course. The Tapti River rises in Madhya Pradesh. The Vindhya Range includes the north central and northwestern boundary of the Peninsula; also the Chota Nagpur Plateau of southern Bihar forms the northeastern boundary of the Tapti River basin. The uplifting of the plateau of the central Peninsula and its eastward bent had formed the vast Western Ghats, a line of hills running from the Tapti River south to the tip of the Peninsula. The Eastern Ghats mark the eastern end of the Tapti plateau; the river begins in the hills Multapi and converges with the Western Ghats at the Peninsula`s southern tip. The geology of Tapti River is more or less similar to the geology of Indian peninsular. The geology of Tapti River can be said as old and geologically stable region with an average elevation between 300 and 1,800 meters. The Vindhya Range constitutes the main separating line between the geological regions of the Indo-Gangetic Plain and the Peninsular. This boundary range lies north of the Narmada River, and when viewed from there, it is possible to determine the high up escarpments that rise between 800 and 1,400 meters. The Vindhya Range includes the north central and northwestern boundary of the Peninsula and the Chota Nagpur Plateau of southern Bihar forms the northeastern boundary. The religious importance of Tapti River is thought to be equivalent to that of legendary Ganges. According to the legends, Tapti River is the daughter of Surya or the Sun God. Some says that Surya has given birth to the Tapti River in order to save himself from his own intense heat. The river is also widely mentioned in the great Indian epic Mahabharata. The naming of the Tapti River is closely linked with its birthplace, Multapi in Madhya Pradesh. The Tapti River took birth in the Betul district from a place called Multai. The Sanskrit name of Multai is Multapi, meaning origin of Tapi Mata or the Tapti River. The Tapti river Basin covers a vast area of 65,145 km² that is nearly two percent of the total area of India. The River basin of Tapti River is the vast fertile patch of land in central India. The river and its tributaries make up the Tapti River basin. The Tapti river basin encompasses an area of 65,145 km², which is nearly two percent of the total area of India. The basin lies in the Indian states of Maharashtra (around 51,504 km²), Madhya Pradesh (around 9,804 km²) and Gujarat (around 3,837 km²). The basin mostly lie in the northern and eastern districts Maharashtra state, including places like Amravati, Dhule, Akola, Washim, Buldhana, Nandurbar, Jalgaon and Nashik districts. However, the Betul and Burhanpur districts of Madhya Pradesh and the Surat district of Gujarat are the prime districts included in the Tapti River basin. There are several places of interest along the Tapti River, these spots have been attracting tourists, and worshippers round the year. Major towns along the river include Betul, Multai and Burhanpur in Madhya Pradesh, Bhusawal in Maharashtra and Surat in Gujarat. The important crossings of the Tapti River include the road bridge Sawalde in Dhule for National Highway 3 and the railway bridge at Bhusawal for the Bhusawal - Khandwa division of the Central Railway. The river features the Hatnur Dam in Jalgaon, Maharashtra and Ukai Dam in Songadh, Gujarat. The Rivers in the Tapti River Basin caters to the water requirements in the central India. The Tapti River basin covers an area of 65,145 km² that makes up almost two percent of the total area of India. The basin lies in the states of Maharashtra, covering an area about 51,504 km², Madhya Pradesh with 9,804 km² surface area and Gujarat covering 3,837 km² of landThe Tapti River (Gujarati: ??????, Hindi ??????, Marathi ???? ) , ancient original name Tapi River (Sanskrit: ????), is a river in central India, in Gujarat passing from Surat and Songadh . It is one of the major rivers of peninsular India with a length of around 724 km. It is one of only three rivers in peninsular India that run from east to west - the others being the Narmada River and the Mahi River.The river rises in the eastern Satpura Range of southern Madhya Pradesh state, and flows westward, draining Madhya Pradesh's Nimar region, Maharashtra's Kandesh and east Vidarbha regions in the northwest corner of the Deccan Plateau and south Gujarat, before emptying into the Gulf of Cambay of the Arabian Sea, in the Surat District of Gujarat. The river, along with the northern parallel Narmada river, form the boundaries between North and South India. The Western Ghats or Sahyadri range starts south of the Tapti River near the border of Gujarat and Maharashtra. The Tapti (Tapi) River empties into the Gulf of Khambhat near the city of Surat in Gujarat.The Tapti River rises in Madhya Pradesh. The Vindhya Range includes the north central and northwestern boundary of the Peninsula; also the Chota Nagpur Plateau of southern Bihar forms the northeastern boundary of the Tapti River basin. The uplifting of the plateau of the central Peninsula and its eastward tilt formed the Western Ghats, a line of hills running from the Tapti River south to the tip of the Peninsula. The Eastern Ghats mark the eastern end of the Tapti plateau; the river begins in the hills Multapi and converges with the Western Ghats at the Peninsula`s southern tip. The interior of the Peninsula is mainly the area that lies south to the Narmada River, often termed the Deccan Plateau or simply the Deccan (from the Sanskrit daksina , meaning south), is a series of plateaus topped by rolling hills and intersected by many rivers. The plateau averages roughly 300 to 750 meters in elevation. The major rivers flowing in this plateau are Godavari, the Krishna, and the Kaveri--rise in the Western Ghats and flow eastward into the Bay of Bengal.Along with the Narmada and Mahi Rivers, runs the Tapti River covering an area of 724 kms. Rising from the Satpura Range Of Southern Madhya Pradesh it flows towards the Maharashtra's Kandesh and East Vidharbha regions of Deccan Plateau. In the Western side is the Gulf of Cambay and the Arabian Sea, thats is Gujarat. The last destination of Tapti River is the Gulf of Khambhat (Surat - Gujarat).The main Tributaries of the Tapti River are Purna, Gima, Panzara, Waghur, Bori, and Aner River. Apart from these there are about 40 other small river which make of the most of Tributaries to the Tapi River.The major towns which the river covers along its path are Betul, Burhanpur (Madhya Pradesh), Bhusawal (Maharashtra), and Surat (Gujarat). A number of dams have been constructed on the water of Tapti River. These include - Hatnur Dam of Jalgaon, Maharashtra and Ukai Dam of Songadh in Gujarat. Several Tiger Reserve have been opened seeing the nearness of the River Tapti. These Reserves are Melghat Tiger Reserve, Amravati, Madhya Pradesh. This Project extends to the boundary of Maharashtra.
Tapti
Tapti River/ Tapi River is a river of Central India. Tapati, Tapti, Tapee, Taapi are the various names used to denote Tapti River. Also known as the daughter of Sun God, its basin extends over an area of 65, 145 km sq. - a whooping area which totals to 2% of the total area of India. In India, Tapti River originates at Multani of Betul District. The Basin of Tapti River lies in three Indian States, namely, Gujarat, Madhya Pradesh and Maharashtra. Tapti River plays a major role in all the religious festivals and ceremonies. The waters of Tapti river are considered to be holy.Fast Facts Place of Origin : Betul District (Multani) - Satpura Forest Range.Compliance : One of the major rivers which run from East to West.Place of Pilgrimage : Burhanpur, South West of Madhya PradeshTapti River, ancient original name Tapi River (Sanskrit: ????), is a river in central India. It is one of the major rivers of peninsular India with a length of around 724 km. It is one of only three rivers - the others being the Narmada River and the Mahi River that runs from east to westThe river rises in the eastern Satpura Range of southern Madhya Pradesh state, and flows westward, draining Madhya Pradesh's Nimar region, Maharashtra's Kandesh and east Vidarbha regions in the northwest corner of the Deccan Plateau and south Gujarat, before emptying into the Gulf of Cambay of the Arabian Sea, in the Surat District of Gujarat. The river, along with the northern parallel Narmada river, form the boundaries between North and South India. The Western Ghats or Sahyadri range starts south of the Tapti River near the border of Gujarat and Maharashtra. The Tapti (Tapi) River empties into the Gulf of Khambhat near the city of Surat in Gujarat.NameThe Tapti River originates in the Betul district from a place called Multai. The Sanskrit name of Multai is Multapi, meaning origin of Tapi Mata or the Tapti River.The Tapi River in Thailand, was named after India's Tapti River in August 1915.River basin and tributariesThe Tapti River basin encompasses an area of 65,145 km², which is nearly two percent of the total area of India. The basin lies in the states of Maharashtra (51,504 km²), Madhya Pradesh (9,804 km²) and Gujarat (3,837 km²).The basin lies mostly in the northern and eastern districts Maharashtra state, including Amravati, Akola, Buldhana, Washim, Jalgaon, Dhule, Nandurbar, and Nashik districts, but also includes the Betul and Burhanpur districts of Madhya Pradesh and the Surat district of Gujarat.List of tributariesThe principal tributaries of the Tapti River are the Purna River, Girna River, Panzara River, Waghur River, Bori River and Aner River. Other tributaries include Tapti originates from Multai, flows westwords and joins Arabian sea apti RiverThe Tapti River (original name Tapi River) is a river in central India. It is one of the major rivers of peninsular India with a length of around 724 km. It is one of only three rivers - the others being the Narmada River and the Mahi River that runs from East to westThe river rises in the Eastern Satpura Range of Southern Madhya Pradesh state, and flows westward, draining Madhya Pradesh's Nimar region, Maharashtra's Kandesh and east Vidarbha regions in the northwest corner of the Deccan Plateau and South Gujarat before emptying into the Gulf of Cambay of the Arabian Sea, in the Surat District of Gujarat. The river along with the northern parallel Narmada river form the boundaries between North and South India. The Western Ghats or Sahyadri range starts south of the Tapti River near the border of Gujarat and Maharashtra. The Tapti (Tapi) River empties into the Gulf of Khambhat near the city of Surat in Gujarat.Contents·1 Name·2 River basin and tributaries o2.1 List of rivers in Tapti River basin·3 Places of interest 4 External links NameThe Tapti River originates in the Betul district from place called Multai. The Sanskrit name of Multai town is Multapi meaning origin of Tapi Mata or the Tapti River.The Tapi River in Thailand, was named after India's Tapti River in August 1915.The Tapi River is daughter of Lord Surya.River basin and tributariesThe Tapti River basin extends over an area of 65,145 km² which is nearly two percent of the total area of India. The basin lies in the states of Maharashtra (51,504 km²), Madhya Pradesh (9,804 km²) and Gujarat (3,837 km²).The basin lies mostly in northern and eastern districts Maharashtra state, including Amravati, Akola, Buldhana, Washim,

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Betul M P